महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
बाप बेटे की लड़ाई
कहां तो अर्जुन खुशी से भरे आ रहे थे। और कहाँ उन्हें एकाएक दूसरा ही रूप देखने को मिला। घोड़ा आगे-आगे चल रहा था। मणिपुर की सेना पत्थर की दीवार बनी खड़ी थी। घोड़ा दो सैनिक टुकड़ियों के बीच खुली जगह के भीतर घुस गया तो अर्जुन ने देखा कि उस खुली जगह पर भी तुरन्त ही सैनिकों की कतारें खड़ी हो गयीं और युद्ध के बाजे बजने लगे। अर्जुन पहले तो चौंके फिर मन में सोचा क्यों न हो वीर बाप का बेटा पहली बार अपने पिता से भेंट करने के अवसर पर उसका वीरोचित स्वागत ही करना चाहता हो। अर्जुन ने कहलाया कि मैं अपने पुत्र के इस विचार मात्र से ही बड़ा प्रसन्न हुआ हूँ। मेरा हृदय इतना गदगद है कि मैं अपने बेटे को कलेजे से लगाने के लिए उतावला हो रहा हूँ। उसका बल पराक्रम देखने की इच्छा अभी नहीं होती। परन्तु अर्जुन के इस भाव भरे मीठे सन्देश का उत्तर वीर वभ्रुवाहन ने शंखघोष करके दिया। बाप-बेटे में लड़ाई छिड़ गयी। अर्जुन बेटे का युद्ध कौशल, फुर्ती और पराक्रम देखकर बार-बार ऐसे मुग्ध हो उठते थे कि उनका लड़वैया मन उनके हाथ से छूट जाता था। पहले तो शाबाश-शाबाश कहते रहे और बेटे के बाणों के घाव भी हंस-हंस कर अपने शरीर पर झेलते रहे पर फिर युद्ध के जोश ने महाबली के मोह को आखिरकार परास्त ही कर दिया। अर्जुन ने ऐसे घनघोर तीर बरसाये कि वभ्रुवाहन का रथ टूटा, सारथी मरा, और फिर घोड़े भी न बच सके। बस युद्ध के सारे जोश में मन के मोह ने इतनी चतुराई अवश्य कर रखी कि बभ्रुवाहन को खरोंच भी न आये और वह बाप के सामने निहत्था होकर घुटने टेक दे। परंतु बभ्रुवाहन अपने बाप का बेटा तो था ही उसे अपनी एक मां की भक्ति और दूसरी मां से शक्ति मिली हुई थी। रथ टूटा, घोड़े मरे, कोई बात नहीं। शेर के बच्चे ने भूमि पर ही खड़े होकर महाबली अर्जुन के छक्के छुड़ा दिये। अर्जुन उसके आघातों से छक-छक गये। एक अवसर तो ऐसा भी आया था जबकि क्रुद्ध होकर वे अपने बेटे को घायल करने पर भी तुल गये थे। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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