महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
ध्रुव की कथा
उधर बालक ध्रुव दौड़ता हुआ सीधा अपनी मां सुनीति रानी के पास गया। वह अपनी मां से चिपककर फफक-फफक कर रो उठा। उसका इस प्रकार विलखना देखकर सुनीति रानी घबरा गयीं कि जाने क्या आफत आ पड़ी जिससे यह बच्चा इतना रो रहा है। सुनीति रानी ने अपने बेटे को बार-बार दुलराया और कलेजे से लगाया। जब बच्चे के मन में कुछ धीरज बंधा तो उसने सारी घटना अपनी मां को सुनाकर आंखों में आंसू भरकर पूछा- “मां, क्या तुम्हारा बेटा अपने पिता की गोद में बैठने का अधिकारी नहीं? तुम भी तो मेरे पिता की रानी हो बल्कि पटरानी। मेरे दादा जी और दादी एक बार जब आये थे तब उन्होंने कितना प्यार किया मुझे, मां! सौतेली माता मुझे अपना पिता का प्यार तक नहीं पाने देती?” सुनकर बेचारी सुनीति रानी की आंखें छलछला उठीं। वह बड़ी सीधी और नेक थी। उन्होंने कहा- “बेटा तू अपनी सौतेली मां के व्यवहार को बुरा मत मान। मैं तो तुझे प्यार करती हूँ और तेरे पिता जी भी तुझे दिल से बहुत चाहते हैं।” “मैं अपने पिता की गोद में कभी नहीं बैठूंगा। वे मुझे चाहते अवश्य हैं, पर वे मेरी सौतेली माता से डरते भी हैं।” सुनीति रानी ने बच्चे के क्रोध को शान्त करने के लिए समझाकर कहा- “हे पुत्र, तू अभी नासमझ है। सुरुचि रानी के द्वारा इस तरह तेरे अपमान करने के पीछे उसकी एक स्वार्थ भावना है। वह चाहती है कि बड़ा होकर उसका बेटा ही नया नेता बने। वह उत्तम को पिता की गद्दी पर बिठाना चाहती है।” मां की बात पूरी भी न हो पायी थी कि ध्रुव आवेश से बोल उठा, “मुझे नहीं चाहिए अपने पिता की गद्दी। मुझे तो उनकी गोद में बैठने का अधिकार चाहिए। अकेले में वे मुझे जो प्यार देते हैं, मुझे उस प्यार का अधिकार चाहिए।” बेटे की बात सुनकर मां ने एक ठंडी सांस भरी और कहा- “गोद और गद्दी का अधिकार स्वार्थियों की दृष्टि में एक ही होता है, बेटा तू उसे भूल जा। भगवान तुझे उससे ऊंचा आसन देगा।” बालक ध्रुव आश्चर्य से अपनी मां का मुख देखने लगा। उसने पूछा, “पिताजी की गोद से ऊंचा आसन कौन है मां?” “परमपिता परमेश्वर की गोद। जिसे परमात्मा प्यार करने लगता है वह सारी दुनिया का प्यारा हो जाता है। वह लोगों के मन में आप ही आप श्रेष्ठ आदर का स्थान पा जाता है।” |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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