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महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
दुर्योधन और अश्वत्थामा की भेंट
वे सीधे दुर्योधन के पास पहुँचे और उसके कान में उत्साह भरे स्वर के साथ कहा- “मैं पांचों पाण्डवों को मार आया मित्र, तुम अब सुख से मरो।” दुर्योधन ने सुन कर एक बार आंखें खोलीं और मुस्कराया। उसका दाहिना हाथ सरक कर अश्वत्थामा को प्यार से छूने लगा किन्तु उसके मुंह से कोई बोल नहीं निकल सका। वैसे ही उसके प्राण छूट गये। पाण्डवों के मरने का हाल सुनकर दुर्योधन तो चैन से मरा लेकिन दूसरे दिन अश्वत्थामा को यह जान कर बड़ी ही निराशा हुई कि उसने कुन्ती के बजाय द्रौपदी के पांच बेटे मार डाले थे। इस दुःखद समाचार से पाण्डवों के शिविर में तहलका मच गया। यह सच है कि इस महायुद्ध में जहाँ सब पाण्डव भाई बच गये थे वहीं उनकी अनेक सन्तानें नष्ट भी हुई थीं। अर्जुन का होनहार पुत्र अभिमन्यु मारा गया। हिडिम्बा राक्षसी से उत्पन्न भीम का परम पराक्रमी पुत्र घटोत्कच मारा गया और अब अश्वत्थामा ने द्रौपदी से उत्पन्न पांचों भाइयों के पांच बेटे भी छल से मार डाले। रनिवास में जब यह समाचार पहुँचा तो द्रौपदी शोक के मारे बावली हो गयी। उसे कोई किसी तरह से धीरज बंधा ही नहीं पाता था। पांचों पाण्डव भी अपने बेटों के मारे जाने से बड़े ही दुखी थे। उन्होंने किसी तरह से यह टोह पा ली कि गुरु द्रोण का बेटा अश्वत्थामा ही उनके बेटों का हत्यारा है। अर्जुन अपनी प्रिय रानी को संतुष्ट करने के लिए भयंकर बदला लेने की भावना से अश्वत्थामा की खोज में गये। जब युधिष्ठिर को यह मालूम हुआ तो उन्होंने श्रीकृष्ण और भीम को भी उनके पीछे-पीछे रवाना किया। युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से कहा- “हे केशव, देखना अर्जुन कहीं अश्वत्थामा की हत्या न कर डाले। कुछ भी हो वह हमारे गुरु का बेटा है। बुरे लोगों की संगत में पड़कर उसके मन में भले-बुरे कामों का विवेक नष्ट हो गया है।” भीमसेन बोले- “कुछ भी हो भैया, अश्वत्थामा को दण्ड तो दिया ही जायगा। उसने ऐसा नीच कार्य किया है जैसा कि कोई वीर पुरुष कभी कर ही नहीं सकता।” अश्वत्थामा आखिर पकड़ा गया। अर्जुन और भीम ने उसको खूब अपमानित किया। उसके सिर की मणि छीन ली। कृष्ण के कहने पर उसके प्राण बच गए। चलते-चलते अश्वत्थामा हंस कर बोला- “तुम लोग जीत तो अवश्य गये पर जब तुम्हारे यहाँ भी कोई राजपाट भोगने वाला नहीं रहा। तुम्हारे सब बेटे मारे गये हैं।” यह कहकर वह बड़ी जोर से हंस पड़ा। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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