महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
भीम दु:शासन युद्ध
दिन भर में पहली बार शल्य के मीठे वचन सुनकर कर्ण को सचमुच बड़ी सान्त्वना मिली। उसने कहा- “मामा, मान लो, अर्जुन मुझे भी युद्ध में मार डाले, तब तुम क्या करोगे?” शल्य बोले- “मैं वचन देता हूँ कि कृष्ण और अर्जुन से तुम्हारा बदला लूंगा।” एक ओर से हाथी के निशान वाला हाथी के ही चमड़े से मढ़ा कर्ण का रथ बड़ा चला आ रहा था और शल्य उसे हांक रहा था। दूसरी ओर से वानर ध्वजाधारी और शेर के चमड़े से मढ़ा हुआ अर्जुन का रथ बढ़ा आ रहा था और सारथी श्रीकृष्ण थे। बड़े-बड़े योद्धाओं में यह खबर फैल गई कि वह युद्ध जिसे देखने के लिये लोग महीनों से आतुर थे अब होने वाला है। दुर्योधन के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं कि देखें कौन जीतता है। अश्वत्थामा उनके साथ थे उन्होंने कहा- “सुयोधन, मैं तुम्हारा गुरुभाई और मित्र हूँ। मेरी बात मान लो और पाण्डवों से अब भी समझौता कर लो।” दुर्योधन को इस सुझाव से चिढ़ हुई वह बोला- “घबराओ मत मित्र, आज सूर्यास्त होते-होते पाण्डवों का सौभाग्य सूर्य भी अस्त हो जायगा। तुम देख लेना हमारा कर्ण आज अपने बेटे और अपने सब भाइयों की हत्या का बदला अवश्य ले लेंगे।” अश्वत्थामा बोले- “सम्भव है ऐसा ही हो, मगर मान लो कि बात उल्टी सिद्ध हुई तो फिर क्या होगा? भीष्म पितामह और मेरे पिता के बाद यदि कर्ण भी न रहा तो तुम्हारा अमंगल होगा।” दुर्योधन इस समय ऐसी बातें सोचना या सुनना नहीं चाहता था। उसने कहा- “कल की चिन्ता कल होगी। गुरुपुत्र आज का मंगल मनाओ। वह देखो, मेरा मित्र, मेरे परम शत्रु के सामने आ गया।” कर्ण और अर्जुन आमने-सामने आ चुके थे। कर्ण ने अर्जुन से कहा- “आज तो जीवन और यश का अन्तिम दिन है अर्जुन, आज से दुनिया यह कहेगी की विश्व का सबसे बड़ा वीर एक मात्र कर्ण ही है।” अर्जुन ने उत्तर दिया- “धनुष संभालो कर्ण! वीरों की डींग हांकने का अवकाश नहीं होता, लो वार झेलो।” दोनों में लड़ाई छिड़ गई। इतने दिनों से चल रहे महायुद्ध में ऐसी टक्कर की लड़ाई अभी तक नहीं हुई थी। दोनों ही अद्भुत धनुर्धर थे। दोनों ही के पास एक से एक अनोखा बाण और दूसरे हथियार थे और दोनों ही महाबलशाली थे। शल्य बड़े चतुर सारथी थे लेकिन कृष्ण की चतुराई के आगे वे फीके पड़ जाते थे। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विषय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज