महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
भीम दु:शासन युद्ध
यह शक उस देश के रहने वाले थे जो पुराने समय में सीस्तान और आजकल दक्षिणी ईरान तथा उज्बेकिस्तान कहलाता है। 'कम्बोज' को अब कबोह कहते हैं। तुषर ही बाद में चल कर कुषाण भी कहलाने लगे थे। यह शक और कुषाण ईरान से लेकर आज के सोवियत यूनियन के अनेक देशों तक फैले हुये थे। पनव योन टापू निवासी थे जिसे अब यूनान कहा जाता है। इन सब जातियों के लोग आर्य ही थे, और उस समय हमारे तथा उनके धर्म संस्कारों में भी कोई खास बड़ा अन्तर नहीं था। लेकिन ठण्डे देशों के ये लड़वैये हमारे यहाँ के शूर वीरों से अधिक जल्लाद होते थे। दुर्योधन ने देखा कि कर्ण के बजाय उसका बेटा युद्ध में फंसा हुआ है तो जल्दी से उसने शको, कुषाणों और पनवों को लड़ने के लिए बढ़ाया। एक ओर से कृपाचार्य ने दूसरी ओर से अश्वत्थामा तथा वृषसेन के पास खड़े होकर दुर्योधन ने अर्जुन से लड़ने के लिए मोर्चे संभाले। इतने दुश्मनों से अपने आप को घिरा हुआ पाकर अर्जुन का पराक्रम अलौकिक बन गया। उसने भयंकर युद्ध किया। औरों को चीं बुलाने वाले शक-पनव योद्धा अर्जुन के आगे खुद भी बोल उठे। दुर्योधन भी अर्जुन के तीखे बाणों का सामना अधिक देर तक न कर सका। अश्वत्थामा और कृपाचार्य तक इस समय अपने आपको अर्जुन के आगे थका हुआ अनुभव करने लगे थे। लेकिन वृषसेन, अर्जुन पर अब भी नौजवानी का जादू चढ़ा रहा था। यद्ध करते हुए अर्जुन अब इतना गरमा गया था कि वह अधिक देर तक वृषसेन की वीरता से खिलवाड़ भी नहीं कर सकता था। उसे कर्ण से लड़ने की ललक थी। इसलिए जब वृषसेन ने गरमाकर उस पर एक शक्ति बाण छोड़ा तो अर्जुन ने इस बाण को काटते हुए वृषसेन को भी मार डाला। कौरवों के चेहरे पर मुर्दनी छा गयी। उनकी सेनाएं हिम्मतपस्त हो जाने के कारण इधर-उधर भागने लगीं। उनकी भाग-दौड़ के कारण ही आनन-फानन में यह खबर दूर-दूर तक दौड़ गयी कि अर्जुन ने वृषसेन को मार डाला है। यह अशुभ सूचना कर्ण के कानों तक भी जा पहुँची। मद्रराज शल्य भी यह सुनकर दुःखी हुए। आज दिन भर उन्होंने हर तरह से कर्ण को नीचा दिखाने के लिये लाख जतन किये पर उसने बार-बार अपने ऊंचे दर्जे के पराक्रम के अनोखे प्रमाण देकर उन्हें मुग्ध कर लिया था। बेटे की मौत पर कर्ण का आंसू भरा उदास मुख देखकर राजा को बड़ी दया आयी। उन्होंने कहा, “वीर शोक नहीं जानता, कर्ण! चलो, और अर्जुन को मार कर अपना बदला लो।” |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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