महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
द्रुपद से युद्ध
इन बातों से राजा धृतराष्ट्र बहुत चिन्तित तो थे ही, इसलिए दुर्योधन ने जब उन्हें यह सलाह दी कि पाण्डवों को कुछ दिन वारणावत नगर में आराम करने भेज दीजिए, इससे आगे की समस्या पर विचार करने के लिए हमारा काफी समय जायगा, तो उन्हें यह सलाह बहुत पसन्द आई। राजा धृतराष्ट्र ऊपर से तो बड़े धर्मात्मा और दयालु बनते थे, मगर मन ही मन में वह यही चाहते थे किसी प्रकार से उनके यह पाण्डव भतीजे नष्ट हों तो राजगद्दी का अधिकार उनके बड़े बेटे दुर्योधन को मिले। धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर को बुलाकर कहा कि बेटा तुमको विश्राम की आवश्यकता है। मैंने वारणावत नगर में तुम्हारे ठहरने का प्रबन्ध कर दिया है। अपनी माता को लेकर तुम पांचों भाई कुछ दिनों वहाँ की सैर कर आओ। राजकुमार युधिष्ठिर अपने ताऊ जी की यह आज्ञा सुनकर मन ही मन चौंके, परन्तु बड़ों की आज्ञा मानना अपना धर्म समझकर उन्होंने आपत्ति की। ताऊ जी से ‘जो आज्ञा’ कहकर वे चले आये। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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