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महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
युधिष्ठिर और अर्जुन की मंत्रणा
कृष्ण बोले- “चलो अब अपने परम शत्रु कर्ण से निपटो। उसकी मृत्यु तुम्हारे पहुँचने की प्रतीक्षा कर रही है।” अर्जुन बोले- “मित्र, एक बार तुम मुझे मेरे भाइयों की सूरतें दिखला दो। उन्हें सकुशल देखते ही मेरा जोश दुगुना-चौगुना बढ़ जायगा।” कृष्ण बोले- “घबराते क्यों हो, भइया हमारे भाई तुम्हें सकुशल देखने को मिलेंगे।" यह कहकर कृष्ण ने अपना रथ आगे बढ़ाया। ये लोग थोड़ी ही दूर तक बढ़ पाये थे कि सामने से महारथी अश्वत्थामा शेर की तरह दहाड़ते हुए आ पहुँचे। उन्होंने अर्जुन को ललकार कर कहा- “हे मेरे पिता के प्रिय शिष्य, ठहर, और तनिक मेरे पंचबाणों का पंचामृत भी पीता जा। आज तुझे यह मालूम पड़ जायगा कि गुरु का बेटा भी गुरु ही होता है। वह चेलों से कहीं अधिक चतुर होता है।” अर्जुन यह सुनकर हंस पड़े बोले- “मेरे प्यारे गुरु भाई, तुझे भी आज यह सिद्ध हो जायगा कि गुरुवर द्रोणाचार्य जी के शिष्य से उलझना हंसी ठठ्ठा नहीं है। तुम क्या, इन्द्र भी यदि मेरे सामने आयें तो इस समय मात खाकर ही जायेंगे।” अश्वत्थामा ने अर्जुन की बात पूरी होते न होते कृष्ण और अर्जुन पर तीर बरसाने आरम्भ कर दिये। श्रीकृष्ण दुश्मनों के तीरों से अपने घोड़ों तथा अपने आप को बचाने में बड़े ही कुशल माने जाते थे लेकिन अश्वत्थामा से अपना बचाव करने में उन्हें विशेष मेहनत करनी पड़ी। अर्जुन ने अश्वत्थामा को तंग करने के लिए सबसे पहले उनके रथ के सारथी को ही निशाना बनाया। सारथी के मरने पर अश्वत्थामा ने तुरन्त ही अपने रथ के घोड़ों की बागडोर सम्हाल ली। रथ के घोड़े और तीर वह एक साथ चलाने लगे। उनकी फुर्ती देखकर शत्रु और मित्र दोनों ही पक्षों के लोग दंग हो रहे थे। अर्जुन ने भी यह कमाल दिखलाया। उन्होंने अश्वत्थामा के घोड़ों की रास काट दी और ऐसे तेज तीर बरसाये कि अश्वत्थामा के रथ के पीड़ित घोड़े रास कट जाने के कारण मुक्त होकर इधर-उधर भागने लगे। बेचारे अश्वत्थामा के लिए यह नई मुसीबत आ गई। अर्जुन अपने गुरुभाई को मारना नहीं चाहते थे। इसलिए उसे परेशानी में छोड़कर वह कौरव सेना का संहार करने में जुट गये। जैसे महारथी अश्वत्थामा के घोड़े भागे थे वैसे ही कौरव सेना भी अर्जुन की मार से घबराकर इधर-उधर भागने लगी। कौरव सेना के लड़वैये ऐसे दहल गये थे कि महासेनापति कर्ण आदि के हिम्मत दिलाने पर भी वे अर्जुन के सामने एक पल भी ठहरने को राजी न हुए। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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