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महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
युधिष्ठिर और अर्जुन की मंत्रणा
कर्ण जहाँ युधिष्ठिर को अपना छोटा भाई समझ कर उससे बच-बचकर लड़ रहे थे, वहीं धर्मराज युधिष्ठिर कर्ण को अपने छोटे भाई अर्जुन का घोर शत्रु मान कर उससे पूरी घृणा और क्रोध के साथ लड़ रहे थे। उन्होंने कर्ण को मारने के लिए बड़ा ही विषधर बाण अपने धनुष पर चढ़ाया और धनुष की डोरी को कानों तक खींच कर पूरी शक्ति के साथ छोड़ दिया। वह तीर कर्ण की पसली में लगा। कर्ण को बड़ी पीड़ा हुई। उनका शरीर शिथिल पड़ गया। धनुष हाथ से छूट कर गिर गया और वे बेहोश होकर अपने रथ पर ही गिर गये। यह देख कौरव सेना में हाहाकार मच गया। पाण्डव सेना उल्लास से भरकर किलकारियां मारने और सिंहनाद करने लगी। लेकिन पाण्डव सेना की यह खुशी अधिक देर तक न टिक सकी। कर्ण जल्दी ही होश में आ गये और अपने शरीर में लगे हुए तीर के विष को नष्ट करने के लिए उन्होंने अपने घाव पर एक औषधि मली तथा झटपट अपना धनुष उठाकर उन्होंने भयानक बाण बरसाने आरंभ कर दिये। कर्ण का क्रोध देखकर युधिष्ठिर की रक्षा के वास्ते पाण्डव पक्ष के कई वीर साथ मिलकर कर्ण से लड़ने लगे। ऐसा भीषण आक्रमण होने पर महातेजस्वी कर्ण ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। उनके असंख्य बाणों से दशों दिशायें सनसना उठीं। पाण्डव वीरों के बीच में कर्ण ऐसे शोभित हो रहे थे जैसे अनेक सांड़ों से लड़ता सिंह शोभित होता है। इस तरह सब शत्रुओं को अपने तीरों के जादू से बांधकर कर्ण ने युधिष्ठिर को दण्ड देने के लिए सताना आरम्भ कर दिया। युधिष्ठिर का एक धनुष कटा, दूसरा कटा, तीसरा भी कट गया वह जैसे ही धनुष अपने हाथ में उठाते थे कर्ण का तीर वैसे ही उनके धनुष को काट डालता था। यही नहीं कर्ण ने युधिष्ठिर का कवच भी काट डाला और उनके शरीर पर कई घाव किये। तब युधिष्ठिर ने झुंझलाकर एक शक्ति छोड़ी मगर कर्ण ने हंसते-हंसते ही उसे बीच में काट डाला। इसके बाद कर्ण फिर इस तरह से युधिष्ठिर के पीछे पड़े कि उसका सारथी, तरकस तीर, रथ कुछ भी न छोड़ा। युधिष्ठिर घबराकर मैदान से भागे। कर्ण ने शल्य से अपना रथ भी उधर ही भगाने को कहा। वह युधिष्ठिर को जीवित पकड़कर उसे दुर्योधन को सौंपना चाहता था। वह अपने मित्र को यह दिखला देना चाहते थे कि जो काम द्रोणाचार्य न कर सके वह उन्होंने चुटकी बजाते कर दिखाया। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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