महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
शल्य सारथी बने
दूसरे दिन सवेरे अपने नियम के अनुसार ही कर्ण ने सूर्य भगवान को अर्ध्य देकर उन्होंने प्रार्थना की- “हे परम पिता, तुम मेरे साथ न्याय करना। मैं तुमसे हार-जीत का वरदान नहीं मांगता, केवल यही चाहता हूँ कि आज रण में मेरे पराक्रम को देखकर संसार यह मान ले कि अर्जुन मेरे आगे ओछा योद्धा है। मां कुन्ती के बेटों में अर्जुन के सौभाग्य ने ही मुझे सदा ही चिढ़ाया है। दुनिया मेरी इस चिढ़ का सच्चा कारण जान ले। जिसे वह सर्वश्रेष्ठ वीर मानती है वह कर्ण के आगे कच्चा है।" युद्ध के ढोल, दामामे, तुरही, नरसिंघे आदि बाजे बज उठे। कर्ण ने बड़ा ही तगड़ा व्यूह रचाया था। शल्य को सारथी बनाकर कर्ण रथ पर ऐसे बैठे थे मानो मेघ के ऊपर सूर्य बैठा हो तब कर्ण का रथ युद्ध क्षेत्र की ओर चला। रास्ते में मद्रराज को सम्मानित करते हुए कर्ण ने कहा- “हे महाबली, आपका सहयोग पाकर आज मैं अपने को धन्य मानता हूँ। आज मैं दुनिया को यह दिखला दूंगा कि अर्जुन मेरे आगे पानी भरता है। आप को पाकर आज मेरा हौसला बहुत ही बढ़ गया है।” किन्तु शल्य मामा अपनी घात में थे। वे उसे निस्तेज करने के लिये ठंडे-ठंडे स्वर में बोले- “देखो भैया, मैं तो यह बात मान लूंगा कि तुम अर्जुन से बड़े वीर हो मगर अर्जुन के बाण ही जब तुम्हारे छक्के छुड़ा देंगे तो मैं दुनिया से यह कैसे मनवाऊंगा कि तुम्हीं सबसे बड़े वीर हो?” इस शहद लिपटी छुरी के घाव से कर्ण तिलमिला उठे उन्होंने तड़प कर कहा- “सूर्य भगवान साक्षी हैं मामा, मैं आज यह सिद्ध कर दूंगा कि अर्जुन मेरे आगे कुछ भी नहीं है। मैं आज पाण्डव सेना के चिथड़े उड़ा दूंगा। एक बार कहीं अर्जुन दिख भर जाय फिर मैं प्रलय मचा दूंगा।” शल्य बड़ी सामंती ठसक से बोले- “अरे सूत के बेटे, तुम भला राजपुत्रों का क्या मुकाबला कर सकोगे? तू जिसके घर में पला है वह अर्जुन के पिता का नौकर था। तेरी हस्ती क्या है जो तू महाबली अर्जुन का मुकाबला करे।” कर्ण सुनकर एकदम से चिढ़ उठा। उसने कहा- “मामा युद्ध में सारथी लड़वैये का हौसला बंधवाते हैं। तुम्हारी सारथी कला की मैंने बड़ी-बड़ी तारीफें अब तक सुन रखी थीं। अगर उसका पहला नमूना यही है तो फिर क्या कहूं? खैर, इस विपरीत स्थिति में भी मैं अपना पराक्रम श्रेष्ठ सिद्ध करके दिखला दूंगा।” शल्य इस बात को सुनकर मन ही मन लज्जित हो गये। किन्तु एक बार जो ढंग उन्होंने अपना लिया था उसे बराबर निभाते रहना ही वह अब आन की बात समझते थे, बोले- “हे सारथी के बेटे, मैं चूंकि इस समय राजनीतिक कारणों से तेरा सारथी बना हूं, इसलिए तुझे सही स्थिति का अनुमान कराना मेरा कर्तव्य है। तुमने कौवे और हंस वाली कथा सुनी है? न सुनी हो तो मैं सुनाये देता हूँ।” |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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