विषय सूची
महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
मामा भान्जे की भेंट
शल्य तो यही चाहते थे। उन्होंने सोचने विचारने के बहाने से जरा घमण्ड भरा नखरा दिखाकर एकाध दिन के बाद उत्तर देने की बात कहकर वे उस प्रसंग को टाल गये। महाभारत के युद्ध में भी कर्ण और अर्जुन युद्ध कला के नये-नये करिश्मे दिखला रहे थे। कर्ण जब सेनापति बना तो पाण्डवों के पक्ष में भी गर्मी आई। अर्जुन का हौसला सचमुच युद्ध के लिए अब जागा। भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य से बड़ी बहादुरी के साथ लड़ते हुए भी उसे इस बात का ध्यान रहता था कि वह अपने दादा जी और गुरु से लड़ रहा है। युद्ध में जी जान से लड़कर भी वे अपना अदब नहीं छोड़ पाते थे लेकिन कर्ण और अर्जुन की लाग-डांट तो बचपन से ही चली आ रही थी। कर्ण अपने आपको अर्जुन से बहुत बड़ा योद्धा मानता था और इसी तरह अर्जुन भी अपने आपको कर्ण से अधिक शक्तिशाली मानता था। अब दोनों की कमान में कौरव सेना और पाण्डव सेना लड़ रही थीं इसलिये हर आदमी यह विश्वास रखता था कि यह लड़ाई ही सबसे अधिक मार्के की होगी। कर्ण ने सेनापति बनते ही इस युक्ति से मोर्चे बन्दी की दूर-दूर तक घमासान लड़ाई होने की नौवत आ जाये। कर्ण ने पाण्डवों के जिस मोर्चे का कमज़ोर समझा वहाँ पर अपनी तगड़ी मोर्चा-बन्दी कर दी। बड़े-बड़े योद्धा जो अलग-अलग घूमकर हर मोर्चे पर लड़ते थे, इस चिन्ता में पड़ गये कि कहां-कहां जमकर युद्ध करें। अग्नि साधारण अस्त्र आम तौर से गोलेनुमा होते थे। वे बड़ी ही मामूली किन्तु बड़े कमाल वाली वस्तुओं से बना करते थे। अग्निधारण गोले गधे, ऊंट, बकरे और भेड़ों की लीद और मेंगनियों को गूगल, लाख, तारपीन और दो एक खास किस्म के पत्तों का चूरा मिलाकर बनाये जाते थे। क्षेप्योअग्नियोग में भी ऊपर बतलाये गये पशुओं की लीद और मेंगनियों के अलावा कोयला, मोम और ऐसी ही कुछ और वस्तुएं मिलाई जाती थीं। विश्वासघाती सचमुच बहुत ही विश्वासघाती होता था। उसमें कई तरह के धातुओं को चूरा, कोयला, मोम और तारपीन आदि ऐसी चीजें मिला होता था जो तीर के धनुष से छूटने पर तेजी से गर्माकर जल उठते थे और शत्रुओं के शरीर पर अंगारों की तरह लगते थे। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विषय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज