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महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
अर्जुन सुभद्रा मिलन
शेर अपने शिकार को अपनी आंखों की मोहनी से बांध लेता है। ऐसी ही मृत्यु-मोहिनी से शत्रु-सेना को मुग्ध करके अर्जुन सीधे उस जगह पहुँचे जहाँ अश्वत्थामा कृपाचार्य और शल्य जैसे बड़े-बड़े वीर जयद्रथ को घेरे हुए खड़े थे। जयद्रथ को देखते ही अर्जुन की आखें क्रोध से लाल हो उठीं। उन्होंने एक बार आंख उठाकर सूर्य की ओर देखा। श्रीकृष्ण बोले “देखते क्या हो अर्जुन? सूर्यास्त की बेला आ पहुँची है और जयद्रथ तुम्हारे सामने। हे मित्र, देखो मैं अपनी माया विद्या से सूर्य को छिपाता हूँ। तुम यह मत समझना कि सूर्य सचमुच अस्त हो गया है। फौरन ही जयद्रथ को मार डालना।” अर्जुन ने ऐसा ही किया। वह इस तरह से युद्ध करता रहा कि जयद्रथ को बचाने वाले महारथी उससे तनिक दूर-दूर छिटक जायें। श्रीकृष्ण ने अपने रथ संचालन से सूर्य की ओर ऐसी धूल उड़ाई कि थोड़ी देर में यह लगने लगा कि मानो सूर्यास्त हो गया। पहले से सिखाये हुए श्रीकृष्ण के कुछ आदमियों ने छिपकर यह शोर मचाना आरम्भ किया कि सूर्यास्त हो गया है। अर्जुन अब प्रतिज्ञा पूरी करें। बौखालाहट में शत्रु लोग इन आवाजों से भयवश आकाश की ओर देखने लगे। जयद्रथ भी अपने जीवन की आशा से उत्साहित होकर अपने छिपाव के ठिकाने से निकल कर आकाश की ओर देखने लगा। अर्जुन इसी मौके की ताक में थे। उनका बाण इधर गाण्डीव से छूटा और उधर जयद्रथ का सिर उसके धड़ से अलग होकर गेंद की तरह हवा में उछल गया। कौरव सेना गहन निराशा के अंधकार में डूब गई। पाण्डव-पक्ष में विजय दुन्दुभियां बजने लगीं। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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