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महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
अर्जुन सुभद्रा मिलन
अर्जुन रथ मार्ग में शिवजी की तरह ताण्डव नृत्य करते हुए फुर्ती से गाण्डीव धनुष से तीर ऐसे लगातार बरस रहे थे कि शत्रु ठगे से खड़े रह जाते थे। उन्हें आक्रमण करने का मौका ही नहीं मिल पाता था। कभी-कभी ऐसा भी होता था कि अर्जुन की बाण वर्षा के चमत्कार को देखते हुए उसकी मोहनी शक्ति से बंधकर वे पीछे भागने के बजाय मृत्यु के मुंह में जाने के लिए स्वयं ही आगे बढ़ जाते थे। अपनी सेना की यह घबराहट देखकर दुर्योधन ने अपने भाई दुःशासन को मोर्चा संभालने के लिए भेजा, किन्तु वह थोड़ी देर के बाद वहाँ से भागा, तब द्रोणाचार्य स्वयं लड़ने के लिए आये। गुरु चेले में ऐसा चमत्कारी युद्ध हुआ कि लोग-बाग बस खड़े देखते ही रह गये। दोनों में से एक भी कम नहीं थे। दोनों ही वीर अपने-अपने स्थानों पर पहाड़ की तरह अचल थे। ऐसी जम कर लड़ाई हो रही थी कि जान पड़ता था आज का सारा दिन गुरु-चेले के इस चमत्कारी युद्ध में ही बीत जायगा और अर्जुन अपनी प्रतिज्ञा पूरी न कर पायेंगे। लेकिन श्रीकृष्ण बड़े ही चतुर थे, उन्होंने अर्जुन से कहा- “मित्र, द्रोणाचार्य तो तुम्हें यहाँ अटकाये रखने लिए ही आये हैं। इनसे कन्ना काटो और शत्रु सेना को इस तरह से तहस-तहस करो कि सूर्यास्त से पहले ही तुम्हारा जयद्रथ से सामना हो सके।” अर्जुन को श्रीकृष्ण की यह सलाह पसन्द आई। अपने गुरु जी को अपनी वाण-विद्या के एक चमत्कारी करतब से चकमा देकर अर्जुन जैसे ही आगे बढ़ने लगे वैसे ही द्रोणाचार्य जी ने ललकार कर कहा- “यह क्या अर्जुन, तुम युद्ध में मुझे हराये बिना ही भाग रहे हो?” अर्जुन हंसकर बोला- “चेला गुरु से अगर जीत भी जाय तो अपनी विनय से उनके आगे सदा हारा है। लेकिन गुरु जी यहाँ बहुत से ऐसे लोग हैं जिनका लहू पीने के वास्ते मेरे तरकस के तीर उतावले हो रहे हैं।” अर्जुन की बात पूरी होते-होते तक श्रीकृष्ण ने गुरु-चेले के युद्ध में तमाशाई बनी खड़ी कौरव सेना के प्यादों के बीच से अपना रथ इतनी तेजी से निकाला कि उनमें कुछ टकराये, कुछ घायल हुए और बाकी में भगदड़ मच गई। गुरु जी अब यदि तीर बरसाते भी तो उन्हीं की सेना के आदमी मरते। वे विवश हो गये। कौरव सेना के दूसरे मोर्चों पर उथल-पुथल मचने लगी। कौरव पक्ष के कई वीर मारे गये। जब अर्जुन का समाना करने के लिए कोई भी तैयार न हुआ तब दुर्योधन झुंझलाकर गुरु द्रोण के पास आया। उसने कहा, “आचार्य जान पड़ता है कि आज आप हम लोगों की मिट्टी पलीद करवा के अपने प्रिय शिष्य अर्जुन को ही विजय दिलाना चाहते हैं।” |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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