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महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
अर्जुन सुभद्रा मिलन
अर्जुन, आसन पर बैठ कर भगवान शंकर की प्रार्थना और पशुपत विद्या का ध्यान करने लगे। बेटे का बदला लेने की तड़प और अपनी प्रबल निष्ठा से जब उन्होंने जमकर विचार करना आरम्भ किया तो उन्हें पशुपत मंत्र आखिर याद आ ही गया। अर्जुन ने रातो-रात उस अस्त्र को चलाने की चुपचाप तैयारी भी कर ली। दोस्त दुश्मन दोनों ही श्रीकृष्ण और अर्जुन की इन तैयारियों से अपरिचित थे। सुबह होने पर भेदिये यह समाचार लाये कि द्रोणाचार्य ने शकट-व्यूह की रचना करके उसके बीचोंबीच राजा जयद्रथ को छिपा दिया है जिससे कि अर्जुन उसे मार न पाये। सुनकर अर्जुन उपेक्षा से मुस्कराये उन्होंने सारथी सखा श्रीकृष्ण की ओर देखकर कहा- “शत्रुओं को यह नहीं मालूम कि जिस ओर श्रीकृष्ण होते हैं उसी ओर बुद्धि, युक्ति और शक्ति भी प्रबल होती है। आज संसार यह भली-भाँति देख लेगा कि पापियों की रक्षा करने वाले गुरु की अमोघ विद्या भी उनके शिष्य और श्रीकृष्ण के सखा अर्जुन की विद्या के आगे नितान्त निकम्मी और निस्तेज सिद्ध हो जायगी।” यह कह कर अर्जुन रथ पर बैठ गये और श्रीकृष्ण कुशलतापूर्वक घोड़ों को हांकते हुए रथ को आचार्य द्रोण के शकट-व्यूह के सामने ले गये। अर्जुन ने बड़ी जोर से अपना शंख बजाया। श्रीकृष्ण ने भी अपने प्रसिद्ध पांचजन्य शंख को बजाकर शत्रुओं के दिल दहला दिए। अर्जुन ने एक बार कौरव सेना की व्यूह-रचना को ध्यान से देखा, फिर कहा, “हे कृष्ण, तुम मुझे सेना के उस भाग की ओर ले चलो जिस ओर हाथी खड़े हुए हैं मैं अपने बाणों की बौछार से इन्हीं हाथियों को अपनी जगह से डराकर व्यूह में घुस जाऊंगा।” श्रीकृष्ण ने रथ को उसी ओर ले जाकर खड़ा कर दिया और अर्जुन ने इतनी फुर्ती से तीर बरसाने आरम्भ कर दिये कि कौरव सेना तैयार होते हुए भी एकाएक उनका सामना न कर सकी। सच पूछा जाय तो अर्जुंन का नाम मात्र ही दुश्मनों के दिलों में आतंक उत्पन्न कर देता था। जैसे नारियल के ऊँचे वृक्षों से टूट कर गिरने वाले नारियल धरती पर टपाटप गिरते हैं, उसी प्रकार हाथियों पर सवार कौरव वीरों के मुण्ड अर्जुन के बाणों से कटकर धरती पर आने लगे। घड़ी पर में ही युद्ध के मैदान में लोथों पर लोथें बिछ गयीं। कौरवों की सेना को हर जगह अर्जुन ही अर्जुन दिखलाई पड़ता था। कहाँ अर्जुन, कहाँ है अर्जुन? वह रहा, वह रहा, बस यही शोर चारों ओर सुनाई पड़ता था। अर्जुन के जादू में बंधे कौरव सैनिक कभी-कभी घबराकर धोखे में अपने ही पक्ष के किसी लड़वैये को अर्जुन समझकर मार डालते थे। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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