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महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
पाण्डु का राज्याभिषेक
लेकिन कुन्ती रानी स्वार्थी न थी। उसने अपनी सौत माद्री रानी को भी वह मंत्र सिखा दिया। माद्री ने अपने देश में बहु पूजित अश्विनी कुमारों का ध्यान करके मंत्र जपते हुए अपने पति से दो जुड़वा बेटे प्राप्त किये। एक का नाम नकुल और दूसरे का सहदेव रखा गया। इस तरह पांच बेटों के भाग्यशाली पिता और एक बड़े राज्य के राजा बनकर राजा पाण्डु ने बड़ी ख्याति पाई। रानी सत्यवती अपने यशस्वी बेटे और अपने ज्येष्ठ पुत्र धृतराष्ट्र और उनके बच्चों के साथ बड़े सुख का जीवन बिता रही थी। तब तक धृतराष्ट्र के भी बहुत सारे बच्चे हो चुके थे। बड़े बेटे का नाम सुयोधन रखा गया। छोटे का नाम सुशासन रखा गया। लेकिन अपने पिता के ईर्ष्या के संस्कार इन बच्चों में भी धीरे-धीरे ऐसे पनपे कि लोग-बाग पीठ पीछे इनका नाम बिगाड़ कर इन्हें दुर्योधन और दुःशासन कहने लगे। बड़ों की भूल के परिणाम बच्चों को भुगतने पड़ते हैं। धृतराष्ट्र अपने पितामह देवापि की तरह विद्वान और ऋषि न बन सके। उन्हें अपने ताऊ भीष्म (गंगादत्त) का महान व्यक्तित्व भी प्रभावित न कर सका। अपने अन्धे होने के कारण वे भीतर से बेबस, घुन्ने और ईर्ष्यालु हो गए थे। खैर, यह सब गृहस्थी के छोटे-बड़े झगड़े होते हुए भी रानी सत्यवती की गृहस्थी बड़े सुख से चल रही थी। परन्तु दुर्भाग्य से उनका यह सुख बहुत दिन न चला। राजा पाण्डु बहुत बीमार हुए और मर गए। रानी माद्री ने कुन्ती रानी से कहा - "जीजी, मैं पति के साथ सती हो जाऊंगी। मैं कहने भर को ही नकुल, सहदेव की मां हूँ। जैसे तुम अब तक अपने पांचों बच्चों को सम्हालती हो वैसे आगे भी सम्हालोगी, इसलिए मुझे कोई चिन्ता नहीं है और न मेरी कोई ज़िम्मेदारी ही है। मैं पति के साथ जाती हूँ। माद्री सती हो गई। कुन्ती समान प्यार से पांचों बेटों की देख-भाल करने लग गई।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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