महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
महानाश की तैयारी
धर्मराज युधिष्ठिर के आज्ञा देते ही सेनाओं में जोश उमड़ने लगा। जासूसों और संदेशियों के पैरों में मानो बिजली लग गयी। सारे उत्तर भारत में फैली हुई अपने पक्ष की सेनाओं को युद्ध की मोर्चेबन्दी करने के लिए आदेश भेजे गये। अपने-अपने सेना नायकों के आदेशानुसार ढोल-दमा में बजाते हुए और जय-जयकार बोलते हुए लाव लश्कर चल पड़े। जब हाथी चलते थे तो धरती धमक उठती थी, घोड़ों की खबड़-खबड़ से ऐसा लगता था कि मानो शिवजी के ताण्डव नृत्य का मृदंग बज रहा है। सेनाओं के पीछे हज़ारों नौकर-चाकर भी थे, घसकटे, घोड़े-हाथियों को मलने-दलने वाले, सिपाहियों के लिए रसोई बनाने वाले, लोगों की आवश्यकताओं का सामान बेचने वाले बजरिये तम्बू लगाने वाले और ऐसे ही हज़ारों सेवकों का कोलाहल आकाश को गुंजाने लगा। इसके अतिरिक्त करोड़ों तीरों, गदा, मुदगर, तलवारों आदि का भण्डार लेकर चलने वाले लोग भी सैकड़ों की संख्या में थे। युद्ध क्षेत्र के आस-पास का दृश्य देखकर यही लगता था कि जैसे सारी दुनियां ही लड़ाकू बनकर वहाँ सिमट आयी है। जब पाण्डवों की इन तैयारियों का समाचार कौरवों के यहाँ पहुँचा उन्होंने भी अपनी गर्मा-गर्मी दिखलानी आरम्भ कर दी। लेकिन कौरवों और पाण्डवों के पक्ष में एक बड़ा अन्तर यह था कि पाण्डव जहाँ अपने आप में एकमत थे, वही कौरवों में बड़े मतभेद चल रहे थे। दुर्योधन, दुःशासन आदि कौरव भाई उनके शकुनि मामा, उनके मित्र कर्ण आदि नौजवान लोग अपने दल के बड़े-बूढ़ों के प्रति तनिक भी विश्वास नहीं रखते थे विशेष रूप से भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य के लिए मन में बड़ी आशंकायें थीं। द्रोणाचार्य अर्जुन को मन ही मन बहुत प्यार करते थे। इससे कर्ण और दुर्योधन को बड़ी जलन होती थी। उन्हें डर था कि द्रोणाचार्य, पाण्डवों को मारने के बजाय उनसे बच-बचकर लड़ेंगे। कौरवों के लिए ऐसी लड़ाई घातक सिद्ध होगी। इसी तरह वह यह भी समझते थे कि भीष्म पितामह अपने पाण्डवों को तो नहीं मारेंगे। उन्हें लगता था कि यह बुड्ढे बेमन से लड़कर हमारा खेल बिगाड़ देंगे। इसलिए दुर्योधन ने कर्ण को अपना मुख्य सेनापति बनाना चाहा। जासूस ने यह खबर दी थी कि पाण्डवों ने द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न को अपना प्रधान सेनापति बनाया है। इसलिए टक्कर में कर्ण को ही अपना सेनापति बनाना उन्होंने तय किया। दुर्योधन ने कर्ण को बुलाया और कहा कि तुम हमारे सेनापति बन जाओ। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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