महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 9 श्लोक 38-58

नवम (9) अध्‍याय: उद्योग पर्व (सेनोद्योग पर्व)

Prev.png

महाभारत: उद्योग पर्व: नवम अध्याय: श्लोक 38-58 का हिन्दी अनुवाद

शल्य कहते हैं- राजन! यह सुनकर बढ़ई ने उस समय महेन्द्र की आज्ञा के अनुसार कुठार से त्रिशिरा के तीनों सिरों के टुकड़े-टुकड़े कर दिये। कट जाने पर उनके अंदर से तीन प्रकार के पक्षी बाहर निकले, कपिञ्जल, तीतर और गौरैये। जिस मुख से वे वेदों का पाठ करते तथा केवल सोमरस पीते थे, उससे शीघ्रतापूर्वक कपिञ्जल पक्षी बाहर निकले थे। युधिष्ठिर! जिसके द्वारा वे सम्पूर्ण दिशाओं को इस प्रकार देखते थे, मानो पी जायँगे, उस मुख से तीतर पक्षी निकले। भरतश्रेष्ठ! त्रिशिरा का जो मुख सुरापान करने वाला था, उससे गौरैये तथा वाज नामक पक्षी प्रकट हुए। उन तीनों सिरों के कट जाने पर इन्द्र की मानसिक चिन्ता दूर हो गयी। वे प्रसन्न होकर स्वर्ग लौट गये तथा बढ़ई भी अपने घर चला गया। उस बढ़ई ने भी अपने घर जाकर किसी से कुछ नहीं कहा। तदनन्तर इन्द्र ने ऐसा काम किया है, यह एक वर्ष तक किसी को मालूम नहीं हुआ। युधिष्ठिर! वर्ष पूर्ण होने पर भगवान पशुपति के भूतगण यह हल्ला मचाने लगे कि हमारे स्वामी इन्द्र ब्रह्महत्यारे हैं। तब पाकशासन इन्द्र ने ब्रह्महत्या से मुक्ति पाने के लिये कठिन व्रत का आचरण किया। वे देवताओं तथा मरुग्दणों के साथ तपस्या में संलग्न हो गये। उन्होंने समुद्र, पृथ्वी, वृक्ष तथा स्त्रीसमुदाय को अपनी ब्रह्महत्या बाँटकर उन सब को अभीष्ट वरदान दिया। इस प्रकार वरदायक इन्द्र ने पृथ्वी, समुद्र वनस्पति तथा स्त्रियों को वर देकर उस ब्रह्महत्या को दूर किया। तदनन्तर शुद्ध होकर भगवान इन्द्र देवताओं, मनुष्यों तथा महर्षियों से पूजित होते हुए अपने इन्द्रपद पर आसीन हुए। दैत्यों का संहार करने वाले इन्द्र ने शत्रु मारकर अपने आपको कृतार्थ माना। इधर त्वष्टा प्रजापति ने जब यह सुना कि इन्द्र ने मेरे पुत्र को मार डाला है, तब उनकी आँखें क्रोध से लाल हो गयीं ओर वे इस प्रकार बोले।

त्वष्टा ने कहा- मेरा पुत्र सदा क्षमाशील, संयमी और जितेन्द्रिय रहकर तपस्या में लगा हुआ था, तो भी इन्द्र ने बिना किसी अपराध के उसकी हत्या की है। अतः मैं भी देवेंद्र के विनाश के लिये वृत्रासुर को उत्पन्न करूँगा। आज संसार के लोग मेरा पराक्रम तथा मेरी तपस्या का महान बल देखें। साथ ही वह पापात्मा और दुरात्मा देवेन्द्र भी मेरा महान तपोबल देख ले। ऐसा कहकर क्रोध में भरे हुए तपस्वी एवं महायशस्वी त्वष्टा ने आचमन करके अग्नि में आहुति दे घोर रूपवाले वृत्रासुर को उत्पन्न करके उससे कहा- 'इन्द्रशत्रो! तू मेरी तपस्या के प्रभाव से खूब बढ़ जा'। उनके इतना कहते ही सूर्य ओर अग्नि के समान तेजस्वी वृत्रासुर सारे आकाश को आक्रान्त करके बहुत कड़ा हो गया। वह ऐसा जान पड़ता था, मानो प्रलयकाल का सूर्य उदित हुआ हो। उसने पूछा- 'पिताजी मैं क्या करूँ?' तब त्वष्टा ने कहा- 'इन्द्र को मार डालो।' उनके ऐसा कहने पर वृत्रासुर स्वर्गलोक में गया। तदनन्तर वृत्रासुर तथा इन्द्र में बड़ा भारी युद्ध छिड़ गया। कुरुक्षेत्र! वे दोनों क्रोध में भरे हुए थे। उनमें अत्यन्त घोर संग्राम होेने लगा। तदनन्तर कुपित हुए वीर वृत्रासुर ने शतक्रतु इन्द्र को पकड़ लिया ओर मुँह बाकर उन्हें उसके भीतर डाल लिया। वृत्रासुर के द्वारा इन्द्र के ग्रस लिये जाने पर सम्पूर्ण श्रेष्ठ देवता घबरा गये। तब उन महासत्त्वशाली देवताओं ने जँभाई की सृष्टि की, जो वृत्रासुर का नाश करने वाली थी। जँभाई लेते समय जब वृत्रासुर ने अपना मुख फैलाया, तब बलनाशक इन्द्र अपने अंगो को समेटकर बाहर निकल आये। तभी से सब लोगों के प्राणों में जृम्भा शक्ति का निवास हो गया। इन्द्र को उसके मुख से निकला हुआ देख सब देवता बड़े प्रसन्न हुए। तदनन्तर वृत्रासुर तथा इन्द्र में पुनः युद्ध होने लगा। भरतश्रेष्ठ! क्रोध में भरे हुए उन दोनों वीरों का वह भयानक संग्राम बहुत देर तक चलता रहा। वृत्रासुर त्वष्ठा के तेज और बल से व्याप्त हो जब युद्ध में अधिक बलशाली हो बढ़ने लगा, तब इन्द्र युद्ध से विमुख हो गये। इंद्र के विमुख होने पर सब देवताओं को बड़ा दुःख हुआ। भारत! त्वष्टा के तेज से मोहित हुए सब देवता देवराज इन्द्र तथा ऋषियों से मिलकर सलाह करेने लगे कि अब हमें क्या करना चाहिये? राजन! भय से मोहत हुए सब देवता बहुत देर तक सोच-विचार कर के मन ही मन अविनाशी परमात्मा भगवान विष्णु की शरण में गये और वे वृत्रासुर के वध की इच्‍छा से मन्दराचल के शिखर पर ध्यानस्थ होकर बैठ गये।

इस प्रकार श्रीमहाभारत के उद्योगपर्व के अन्तर्गत सेनोद्योगपर्व में पुरोहित प्रस्थान विषयक नवाँ अध्याय पूरा हुआ।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः