महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 82 श्लोक 42-49

द्वशीति (82) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवादयान पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: द्वशीति अध्याय: श्लोक 42-49 का हिन्दी अनुवाद
  • इतना कहने के बाद पीन एवं विशाल नितंबों वाली विशाललोचना द्रुपदकुमारी कृष्णा का कंठ आंसुओं से रुँध गया। वह काँपती हुई अश्रुगग्दद वाणी में फूट-फूटकर रोने लगी। उसके परस्पर सटे हुए स्तनों पर नेत्रों से गरम-गरम आंसुओं की वर्षा होने लगी, मानो वह अपने भीतर की द्रवीभूत क्रोधाग्नि को ही उन वाष्प बिन्दुओं के रूप में बिखेर रही हो। (42-43)
  • तब महाबाहु केशव ने उसे सांत्वना देते हुए कहा- 'कृष्णे! तुम शीघ्र ही भरतवंश की दूसरी स्त्रियों को भी इसी प्रकार रुदन करते देखोगी। (44)
  • 'भामिनी! जिन पर तुम कुपित हुई हो, उन विपक्षियों की स्त्रियाँ भी अपने कुटुंबी, बंधु-बांधव, मित्रवृन्द तथा सेनाओं के मारे जाने पर इसी तरह रोयेंगी। (45)
  • 'महाराज युधिष्ठिर की आज्ञा तथा विधाता के रचे हुए अदृष्ट से प्रेरित हो भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव को साथ लेकर मैं भी वही करूँगा, जो तुम्हें अभीष्ट है। (46)
  • 'यदि काल के गाल में जाने वाले धृतराष्ट्रपुत्र मेरी बात नहीं सुनेंगे तो मारे जाकर धरती पर लोटेंगे और कुत्तों तथा सियारों के भोजन बन जायेंगे। (47)
  • 'हिमालय पर्वत अपनी जगह से टल जाये, पृथ्वी के सैकड़ों टुकड़े हो जाये तथा नक्षत्रों सहित आकाश टूट पड़े, परंतु मेरी यह बात झूठी नहीं हो सकती। (48)
  • 'कृष्णे! अपने आंसुओं को रोको। मैं तुमसे सच्ची प्रतिज्ञा करके कहता हूँ, तुम शीघ्र ही देखोगी कि सारे शत्रु मार डाले गये और तुम्हारे पति राज्यलक्ष्मी से सम्पन्न हैं'। (49)
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अंतर्गत भगवादयानपर्व में द्रौपदी-कृष्ण संवाद विषयक बयासीवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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