महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 73 श्लोक 17-34

त्रिसप्ततितम (73) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवद्-यान पर्व)

Prev.png

महाभारत उद्योग पर्व: त्रिसप्ततितम अध्याय: श्लोक 17-34 का हिन्दी अनुवाद
  • दीर्घकाल के पश्चात इनकी भारी पराजय होगी। इनकी स्वाभाविक शूरता-वीरता आदि नष्ट हो जाएगी और ये मेरे पास ही प्राण त्याग करेंगे'। (17)
  • उन दिनों जब जूए का खेल चल रहा था, अत्यंत दुरात्मा पापी दु:शासन अनाथ की भाँति रोती कलपती हुई महारानी द्रौपदी को उनके केश पकड़कर राजसभा में घसीट लाया और भीष्म तथा द्रोणाचार्य आदि के समक्ष उसने उनका उपहास करते हुए बारंबार उसे 'गाय' कहकर पुकारा। (18-19)
  • यद्यपि आपके भाई भयंकर पराक्रम प्रकट करने में समर्थ थे, तथापि आपने इन्हें रोक दिया, इसलिए धर्म बंधन में बंधे होने के कारण ये उस समय उस अन्याय का कुछ भी प्रतीकार न कर सके। (20)
  • जब आप वन की ओर जाने लगे, उस समय भी वह बंधु-बांधवों के बीच में ऊपर कही हुई तथा और भी बहुत-सी कठोर बातें कहकर अपनी प्रशंसा करता रहा। (21)
  • जो लोग वहाँ बुलाये गए थे, वे सभी नरेश आपको निरपराध देखकर रोते और आँसू बहाते हुए रुँधे हुए कंठ से उस समय चुपचाप सभा में बैठे रहे (22)
  • ब्राह्मणों सहित उन राजाओं ने वहाँ दुर्योधन की प्रशंसा नहीं की। उस समय सभी सभासद उसकी निंदा ही कर रहे थे। (23)
  • शत्रुसूदन! कुलीन पुरुष की निंदा हो या वध इनमें से वध ही उसके लिए अत्यंत गुणकारक है; निंदा नहीं। निंदा तो जीवन को घृणित बना देती है। (24)
  • महाराज! जब इस भूमंडल के सभी राजाओं ने निंदा की, उसी समय उस निर्लज्ज दुर्योधन की एक प्रकार से मृत्यु हो गई। (25)
  • जिसका चरित्र इतना गिरा हुआ है, उसका वध करना तो बहुत साधारण कार्य है। जिसकी जड़ कट गयी हो और जो गोल वेदी के आधार पर खड़ा हो, उस वृक्ष की भाँति दुर्योधन के भी धराशायी होने में अब अधिक विलंब नहीं है। (26)
  • खोटी बुद्धिवाला दुराचारी दुर्योधन दुष्ट सर्प की भाँति सब लोगों के लिए वध्य है। शत्रुओं का नाश करने वाले महाराज! आप दुविधा में न पड़ें, इस दुष्ट को अवश्य मार डालें। (27)
  • निष्पाप नरेश! आप जो पितृतुल्य धृतराष्ट्र तथा पितामह भीष्म के प्रति प्रणाम एवं नम्रतापूर्ण बर्ताव करते हैं, वह सर्वथा आपके योग्य हैं। मैं भी इसे पसंद करता हूँ। (28)
  • राजन! दुर्योधन के संबंध में जिन लोगों का मन दुविधा में है जो लोग उसके अच्छे या बुरे होने का निर्णय नहीं कर सके हैं, उन सब लोगों का संदेह मैं वहाँ जाकर दूर कर दूँगा। (29)
  • मैं राजसभा में जुटे हुए भूपालों की मंडली में आपके सर्वसाधारण गुणों का वर्णन और दुर्योधन के दोषों तथा अपराधों का उदघाटन करूँगा। (30)
  • मेरे मुख से धर्म और अर्थ से संयुक्त हितकर वचन सुनकर नाना जनपदों के स्वामी समस्त भूपाल आपके विषय में यह निश्चित रूप से समझ लेंगे कि युधिष्ठिर धर्मात्मा तथा सत्यवादी हैं और दुर्योधन के संबंध में भी उन्हें यह निश्चय हो जाएगा कि उसने लोभ से प्रेरित होकर ही सारा अनुचित बर्ताव किया। (31-32)
  • मैं वहाँ आये हुए चारों वर्णों के आबालवृद्ध जनसमुदाय को अपनाकर उनके सामने तथा पुरवासियों और देशवासियों के समक्ष भी इस दुर्योधन की निंदा करूंगा। (33)
  • वहाँ शांति के लिए याचना करने पर आप अधर्म के भी भागी न होंगे। सब राजा कौरवों की तथा धृतराष्ट्र की ही निंदा करेंगे। (34)
  • सब लोग दुर्योधन को अन्यायी समझकर त्याग देंगे और वह निंदनीय होने के कारण नष्टप्राय हो जाएगा। उस दशा में आपका दूसरा कौन-सा कार्य शेष रह जाता है? जिसे सम्पन्न किया जाए। (35)

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः