महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 55 श्लोक 55-69

पंचपंचाशत्‍तम (55) अध्‍याय: उद्योग पर्व (यानसंधि पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: पंचपंचाशत्‍तम अध्याय: श्लोक 55-69 का हिन्दी अनुवाद
  • परंतु देवराज इन्‍द्र ने शत्रुओं को संताप देने वाले वीरवर कर्ण से शची के लिये वे दोनों कुण्डल मांग लिये। महाराज! कर्ण ने बदले में अत्‍यंत भयंकर एवं अमोघ शक्ति लेकर वे कुण्‍डल दिये थे। (55)
  • इस प्रकार उस अमोघ शक्ति से सुरक्षित कर्ण के सामने युद्ध के लिये आकर अर्जुन कैसे जीवित रह सकते हैं? राजन! हाथ पर रखे हुए फल की भाँति विजय की प्राप्ति तो मुझे अवश्‍य ही होगी। (56)
  • भारत! इस पृथ्वी पर मेरे शत्रुओं की पूर्णत: पराजय तो इसी से स्‍पष्‍ट है कि ये पितामह भीष्‍म प्रतिदिन इस हजार विपक्षी योद्धओं का संहार करेंगे। (57)
  • परंतप! द्रोणाचार्य, अश्वत्‍थामा और कृपाचार्य भी उन्‍हीं के समान महाधनुर्धर हैं। इनके सिवा ‘संशप्‍तक’ नामक क्षत्रियों के समूह भी मेरे ही पक्ष में हैं; जो यह कहते हैं कि या तो हम लोग अर्जुन को मार डालेंगे या कपिध्‍वज अर्जुन ही हमें मार डालेंगे, तभी हमारे उनके युद्ध की समाप्ति होगी। वे सब नरेश अर्जुन के वध का दृढ़ निश्चय कर चुके हैं और उसके लिये अपने को पर्याप्‍त समझते हैं। ऐसी दशा में आप उन पाण्‍डवों से भयभीत हो अकस्‍मात व्‍यथित क्‍यों हो उठते हैं? (58-59)
  • शत्रुओं को संताप देने वाले भरतनंदन! अर्जुन और भीमसेन के मारे जाने पर शत्रुओं के दल में दूसरा कौन ऐसा वीर है, जो युद्ध कर सकेगा? यदि आप किसी को जानते हों तो बताइये। (60)
  • राजन! पांचों भाई पाण्‍डव, धृष्‍टद्युम्‍न और सात्‍यकि ये कुल सात योद्धा ही शत्रु-पक्ष के सारभूत बल माने जाते हैं। (61)
  • प्रजानाथ! हम लोगों के पक्ष में जो विशिष्‍ट योद्धा हैं, उनकी संख्‍या अधिक है; यथा भीष्‍म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य आदि, अश्वत्‍थामा, वैकर्तन कर्ण, सोमदत्त, बाह्लिक, प्राग्‍ज्‍योतिषनरेश भगदत्त, शल्‍य, अवन्‍ती के दोनों राजकुमार विंद और अनुविंद, जयद्रथ, दु:शासन, दुर्मुख, दु:सह, श्रुतायु, चित्रसेन, पुरुमित्र, विविंशति, शल, भूरिश्रवा तथा आपका पुत्र विकर्ण। इस प्रकार अपने पक्ष के प्रमुख वीरों की संख्‍या शत्रुओं के प्रमुख वीरों से तीन गुनी अधिक है। (62-64)
  • महाराज! अपने यहाँ ग्‍यारह अक्षौहिणी सेनाएं संग्रहीत हो गयी हैं, परंतु शत्रुओं के पक्ष में हमसे बहुत कम कुल सात अक्षौहिणी सेनाएं हैं; फिर मेरी पराजय कैसे हो सकतीहै? (65)
  • राजन! बृहस्पति का कथन है शत्रुओं की सेना अपने से एक तिहाई भी कम हो तो उसके साथ अवश्‍य युद्ध करना चाहिये। परंतु मेरी यह सेना तो शत्रुओं की अपेक्षा चार अक्षौहिणी अधिक है, इसलिये यह अंतर मेरी सम्‍पूर्ण सेना की एक तिहाई से भी अधिक है। (66)
  • भारत! प्रजानाथ! मैं देख रहा हूँ कि शत्रुओं का बल हमारी अपेक्षा अनेक प्रकार से गुणहीन [1] है, परंतु मेरा अपना बल सब प्रकार से बहुत अधिक एवं गुणशाली है। (67)
  • भरतनंदन! इन सभी दृष्टियों से मेरा बल अधिक है और पाण्‍डवों का बहुत कम है, यह जानकर आप व्‍याकुल एवं अधीर न हों। (68)
  • जनमेजय, ऐसा कहकर शत्रुनगर विजयी दुर्योधन ने शत्रुओं की स्थिति जान लेने के पश्चात समयोचित कर्तव्‍यों की जानकारी के लिये पुन: संजय से प्रश्‍न किया। (69)
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अंतर्गत यानस‍ंधि पर्व में दुर्योधनवाकयविषयक पचपनवां अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. न्‍यूनतम

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