महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 55 श्लोक 19-36

पंचपंचाशत्‍तम (55) अध्‍याय: उद्योग पर्व (यानसंधि पर्व)

Prev.png

महाभारत: उद्योग पर्व: पंचपंचाशत्‍तम अध्याय: श्लोक 19-36 का हिन्दी अनुवाद
  • ‘हममें से एक-एक वीर भी समस्‍त राजाओं को जीतने की शक्ति रखता है। शत्रु लोग आवें तो सही, हम अपने पैने बाणों से उनका धमंड चूर-चूर कर देंगे। (19)
  • भारत! पहले की बात है, अपने पिता शांतनु की मृत्‍यु के पश्‍चात भीष्‍म जी ने किसी समय अत्‍यंत क्रोध में भरकर एकमात्र रथ की सहायता से अकेले ही सब राजाओं को जीत लिया था। (20)
  • रोष में भरे हुए कुरुश्रेष्‍ठ भीष्‍म ने जब उनमें से बहुत-से राजाओं को मार डाला,तब वे डर के मारे पुन: इन्‍हीं देवव्रत भीष्‍म की शरण में आये। (21)
  • भरतश्रेष्‍ठ! वे ही पूर्ण साम‍र्थ्‍यशाली भीष्‍म युद्ध में शत्रुओं को जीतने के लिये हमारे साथ हैं, अत: आपका भय दूर हो जाना चाहिये। (22)
  • इन अमिततेजस्‍वी भीष्‍म आदि ने उसी समय युद्ध में हमारा साथ देने का दृढ़ निश्चय कर लिया था। पहले यह सारी पृथ्वी हमारे शत्रुओं के काबू में थी, किंतु अब हमारे हाथ में आ गयी है। हमारे ये शत्रु अब हमें युद्ध में जीतने की शक्ति नहीं रखते। सहायकों के अभाव में पाण्‍डव पंख कटे हुए पक्षी के समान असहाय एवं पराक्रमशून्‍य हो गये हैं। (23-24)
  • भरतश्रेष्‍ठ! इस समय यह पृथ्‍वी हमारे अधिकार में है। हमने जिन राजाओं को यहाँ बुलाया है, ये सब सुख और दु:ख में भी हमारे साथ एक-सा प्रयोजन रखते हैं, हमारे सुख-दु:ख को अपना ही सुख-दु:ख मानते हैं। (25)
  • इतने पर भी आप शत्रुओं की मिथ्‍या प्रशंसा सुनकर पागल से हो उठै हैं और दुखी एवं भयभीत होकर नाना प्रकार से विलाप कर रहे हैं। यह सब देखकर ये राजा लोग यहाँ हँस रहे हैं। (27)
  • इन राजाओं में से प्रत्‍येक अपने आपको पाण्‍डवों के साथ युद्ध करने में समर्थ मानता है; अत: आपके मन में जो भय आ गया है, वह निकल जाना चाहिये। (28)
  • मेरी सम्‍पूर्ण सेना को इन्‍द्र भी नहीं जीत सकते। स्‍वयम्‍भू ब्रह्माजी भी इसका नाश नहीं कर सकते। (29)
  • प्रभो! युधिष्ठिर तो मेरी सेना तथा प्रभाव से इतने डर गये हैं कि राजधानी या नगर लेने की बात छोड़कर अब पांच गांव मांगने लगे हैं। (30)
  • भारत! आप जो कुंतीकुमार भीम को बहुत शक्तिशाली मान रहे हैं, वह भी मिथ्‍या ही है; क्‍योंकि आप मेरे प्रभाव को पूर्ण रूप से नहीं जानते हैं। (31)
  • गदायुद्ध में मेरी समानता करने वाला इस पृथ्‍वी पर न तो कोई है, न भूतकाल में कोई हुआ था और न भविष्‍य में ही कोई होगा। (32)
  • गदायुद्ध का मेरा अभ्‍यास बहुत अच्‍छा है। मैंने गुरु के समीप क्‍लेशसहनपूर्वक रहकर अस्‍त्र विद्या सीखी है और उसमें मैं पारंगत हो गया हूँ। अत: भीमसेन से या दूसरे योद्धाओं से मुझे कभी कोई भय नहीं है। (33)
  • आपका कल्‍याण हो। बलराम जी का भी यही निश्चय है कि गदायुद्ध में दुर्योधन के समान दूसरा कोई नहीं है। यह बात उन्‍होंने उस समय कही थी, जब मैं उनके पास रहकर गदा की शिक्षा ले रहा था। (34)
  • मैं युद्ध में बलराम जी के समान हूँ और बल में इस भूतलपर सबसे बढ़कर हूँ। युद्ध में भीमसेन मेरी गदा का प्रहार कभी नहीं सह सकते। (35)
  • महाराज! मैं रोष में भरकर भीमसेन पर गदा का जो एक बार प्रहार करूंगा, वह अत्‍यंत भयंकर एक ही आघात उन्‍हें शीघ्र ही यमलोक पहुँचा देगा। (36)

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः