महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 51 श्लोक 33-51

एकपंचाशत्‍तम (51) अध्‍याय: उद्योग पर्व (यानसंधि पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: एकपंचाशत्‍तम अध्याय: श्लोक 33-51 का हिन्दी अनुवाद
  • जैसे मद की धारा बहाने वाला मतवाला हाथी फूले हुए वृक्षों को तोड़ता हुआ आगे बढ़ता है, उसी प्रकार भीमसेन समर भूमि में मेरे पुत्रों की सेना के भीतर प्रवेश करेगा।(33)
  • संजय! वह पुरुषसिंह भीम रथों को रथी, सारथि, अश्व तथा ध्‍वजाओं से शून्य कर देगा एवं रथियों और घुड़सवारों के अंग-भंग कर डालेगा। जैसे गंगाजी का बढ़ता हुआ वेग जलमय प्रदेश में स्थित हुए नाना प्रकार के तटवर्ती वृक्षों को गिराकर नष्‍ट कर देता है, उसी प्रकार भीम युद्धभूमि में आकर मेरे पुत्रों की सेना का संहार कर डालेगा।(34-35)
  • संजय! निश्‍चय ही भीमसेन के भय से पीडित होकर मेरे पुत्र, सेवक त‍था सहायक नरेश विभिन्न दिशाओं में भाग जायंगे।(36)
  • परम बुद्धिमान और बलवान महाबली मगधराज जरासंध ने यह सारी पृथ्वी अपने वश में करके इसे पीड़ा देना प्रारम्भ किया था, परंतु भीमसेन ने भगवान श्रीकृष्‍ण के साथ उसके अन्त:पुर में जाकर उस महापराक्रमी नरेश को मार गिराया।(37-38)
  • भीष्‍मजी के प्रताप से कुरुवंशी और नीतिबल से अंधक-वृष्णिवंश के लोग जो जरासंध के वश में नहीं पड़े, वह केवल दैवयोग था।(39)
  • परंतु अपनी भुजाओं से सुशोभित होने वाले वीर पाण्‍डुपुत्र भीम ने वेगपूर्वक वहाँ जाकर बिना किसी अस्त्र शस्त्र के ही उस जरासंध को यमलोक पहुँचा दिया, इससे बढ़कर पराक्रम और क्या होग?(40)
  • संजय! जैसे विषधर सर्प बहुत दिनों से संचित किये हुए विष को किसी पर उगलता है, उसी प्रकार भीमसेन भी दीर्घकाल से संचित अपने तेज को रणमूमि में मेरे पुत्रों पर छोडे़गा।(41)
  • जैसे देवश्रेष्‍ठ इन्द्र वज्र से दानवों का संहार करते हैं, उसी प्रकार हाथ में गदा लिये भीमसेन मेरे पुत्रों का संहार कर डालेगा।(42)
  • उसका आक्रमण दु:सह है। उसकी गति को कोई रोक नहीं सकता। उसका वेग और पराक्रम तीव्र है। मैं प्रत्यक्ष देख-सा रहा हूँ कि वह भीम क्रोध से अत्यन्त लाल आँखें किये इधर ही दौड़ा आ रहा है।(43)
  • यदि वह गदा, धनुष, रथ और कवच को छोड़कर केवल दोनों भुजाओं से युद्ध करे तो भी उसके सामने कौन पुरुष ठहर सकता हैं?(44)
  • उस बुद्धिमान भीम के बल और पराक्रम को जैसे मैं जानता हूँ, उसी प्रकार ये भीष्‍म, विप्रवर द्रोणाचार्य तथा शरद्वान के पुत्र कृप भी जानते हैं।(45)
  • तथापि ये नरश्रेष्‍ठ शिष्‍ट पुरुषों के व्रत को जानते हैं, इसलिये युद्ध में प्राण त्याग करने की इच्छा से मेरे पुत्रों की सेना के अग्र-भाग में डटे रहेंगे।(46)
  • पुरुष का भाग्य ही सबसे विशेष प्रबल है, क्योंकि मैं पाण्‍डवों की विजय समझकर भी अपने पुत्रों को रोक नहीं पाता हूँ।(47)
  • वे महाधनुर्धर भीष्‍म आदि पुरातन स्वर्गीय मार्ग का आश्रय ले पार्थिव यश की रक्षा करते हुए घमासान युद्ध में अपने प्राण त्याग देंगे।(48)
  • तात! इनके लिये जैसे मेरे पुत्र हैं, वैसे ही पाण्‍डव भी हैं। दोनों ही भीष्‍म के पौत्र तथा द्रोण और कृप के शिष्‍य हैं।(49)
  • संजय! भीष्‍म, द्रोण और कृपाचार्य- ये तीनों वृद्ध श्रेष्‍ठ पुरुष हैं; अत: हमारे आश्रय में रहकर इन्होंने जो कुछ भी दान-यज्ञ आदि किया है, ये उसका बदला चुकायेंगे [1]।(50)
  • जो अस्त्र-शस्त्र धारण करके क्षत्रिय धर्म की रक्षा करना चाहता है, उस क्षत्रिय के लिये संग्राम में होने वाली मृत्यु को ही श्रेष्‍ठ एवं उत्तम माना गया है।(51)

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. युद्ध में दुर्योधन का ही साथ देंगे

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