महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 30 श्लोक 30-42

त्रिंश (30) अध्‍याय: उद्योग पर्व (संजययान पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: त्रिंश अध्याय: श्लोक 30-42 का हिन्दी अनुवाद

जो अद्वितीय वीर एकमात्र रथ की सहायता से अजेय पाण्‍डवों को भी जीतने का उत्साह रखता है तथा जो मोह में पड़े हुए धृतराष्‍ट्र के पुत्रों को और भी मोहित करने वाला है, उस वैकर्तन कर्ण की भी कुशल पूछना। अगाधबुद्धि दूरदर्शी विदुरजी हम लोगों के प्रेमी, गुरु, पालक, पिता-माता और सुहृद हैं, वे ही हमारे मन्त्री भी हैं। संजय! तुम मेरी ओर से उनकी भी कुशल पूछना। संजय! राजघराने में जो सद्गुणवती वृद्धा स्त्रियां हैं, वे सब हमारी माताएं लगती हैं। उन सब वृद्धा स्त्रियों से एक साथ मिलकर तुम उनसे हमारा प्रणाम निवेदन करना। संजय! उन बड़ी-बूढ़ी स्त्रियों से इस प्रकार कहना- 'माताओ! आपके पुत्र आपके साथ उत्तम बर्ताव करते हैं न? उनमें क्रूरता तो नहीं आ गयी है? उन सबके दीर्घायु पुत्र हो गये हैं न?’ इस प्रकार कहकर पीछे यह बताना कि आपका बालक अजातशत्रु युधिष्ठिर पुत्रों सहित सकुशल है। तात संजय! हस्तिनापुर में हमारे भाइयों की जो स्त्रियां हैं, उन सबको तो तुम जानते ही हो। उन सबकी कुशल पूछना और कहना क्या तुम लोग सर्वथा सुरक्षित रहकर निर्दोष जीवन बिता रही हो? तु्म्हें आवश्‍यक सुगन्ध आदि प्रसाधन-सामग्रियां प्राप्त होती हैं न? तुम घर में प्रमाद शून्य होकर रहती हो न? भद्र महिलाओ! क्या तुम अपने श्र्वशुरजनों के प्रति क्रूरता रहित कल्याणकारी बर्ताव करती हो तथा जिस प्रकार तुम्हारे पति अनुकूल बने रहें, वैसे व्यवहार और सभ्‍दाव को अपने हृदय में स्थान देती हो?

संजय! तुम वहाँ उन स्त्रियों को भी जानते हो, जो हमारी पुत्र-वधुएं लगती हैं, जो उत्तम कुलों से आयी हैं तथा सर्वगुण सम्पन्न और संतानवती हैं। वहाँ जाकर उनसे कहना, बहुओ! युधिष्ठिर प्रसन्न होकर तुम लोगों का कुशल-समाचार पूछते थे’। संजय! राजमहल में जो छोटी-छोटी बालिकाएं हैं, उन्हें हृदय से लगाना और मेरी ओर से उनका आरोग्य-समाचार पूछकर उन्हें कहना- ‘पुत्रियो! तुम्हें कल्याणकारी पति प्राप्त हों और वे तुम्हारे अनुकूल बने रहें। साथ ही तुम भी पतियों के अनुकूल बनी रहो’। तात संजय! जिनका दर्शन मनोहर और बातें मन को प्रिय लगने वाली होती हैं, जो वेश-भूषा से अलङ्कृत, सुन्दर वस्त्रों से सुशोभित, उत्तम सुगन्ध धारण करने वाली, घृणित व्यवहार से रहित, सुख शालिनी और भोग-सामग्री से सम्पन्न हैं, उन वेश (श्रृगांर) धारण कराने वाली स्त्रियों की भी कुशल पूछना। कौरवों के जो दास-दासियां हों तथा उनके आश्रित जो बहुत से कुबडे़ और लंगडे़ मनुष्‍य रहते हों, उन सबसे मुझे सकुशल बताकर अन्त में मेरी ओर से उनकी भी कुशल पूछना।

और कहना क्या राजा धृतराष्‍ट्र दयावश जिन अङगहीनों, दीनों और बौने मनुष्‍यों का पालन करते हैं, उन्हें दुर्योधन भरण-पोषण की सामग्री देता है? क्या वह उनकी प्राचीन जीविका-वृत्तिका निर्वाह करता है? हस्तिनापुर में जो बहुत से हाथीवान हैं तथा जो अन्धे और बूढे़ हैं, उन सबको मेरी कुशल-बताकर अन्त में मेरी ओर से उनके भी आरोग्य आदि का समाचार पूछना। साथ ही उन्हें आश्‍वासन देते हुए मेरा यह संदेश सुना देना। तुम्हें जो दु:ख प्राप्त होता है अथवा कुत्सित जीवन बिताना पड़ता है, इसके कारण तुम लोग भयभीत न होना। निश्‍चय ही यह दूसरे जन्मों में किये हुए पाप का फल प्रकट हुआ है। मैं कुछ ही दिनों में अपने शत्रुओं को कैद करके हितैषी सुहृदों पर अनुग्रह करते हुए अन्न और वस्त्र द्वारा तुम लोगों का भरण-पोषण करूंगा।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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