महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 22 श्लोक 33-40

द्वाविंश (22) अध्‍याय: उद्योग पर्व (सेनोद्योग पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: द्वाविंश अध्याय: श्लोक 33-40 का हिन्दी अनुवाद

मुझे तो अर्जुन इन्द्र के समान प्रतीत होते हैं और वृष्णवीर श्रीकृष्ण सनातन विष्णु जान पड़ते हैं। कुन्तीनन्दन पाण्डु पुत्र युधिष्ठिर धर्माचरण में ही सुख मानते हैं। वे लज्जाशील और बलशाली हैं। उनके मन में किसी के प्रति कभी शत्रुभाव पैदा नहीं हुआ है। नहीं तो वे मनस्वी युधिष्ठिर दुर्योधन के द्वारा छल कपट के शिकार होने पर क्रोध करके मेरे सभी पुत्रों को जलाकर भस्म कर देते। संजय! मैं अर्जुन, भगवान श्रीकृष्ण, भीमसेन तथा नकुल, सहदेव से उतना नहीं डरता, जितना कि क्रोध से तमतमाये हुए राजा युधिष्ठिर के कोप से उनके रोष से मैं सदा ही अत्यन्त भयभीत रहता हूँ; क्योंकि वे महान तपस्वी और ब्रह्मचर्य से सम्पन्न हैं, इसलिये उनके मन में जो संकल्प होगा, वह सिद्ध होकर ही रहेगा। संजय! मैं उनके क्रोध को देखकर और उसे उचित जानकर आज बहुत डरा हुआ हूँ।
मेरे द्वारा भेजे हुए तुम रथ पर बैठकर शीघ्र ही पांचालराज द्रुपद की छावनी में जाकर वहाँ अत्यन्त प्रेमपूर्वक अजातशत्रु युधिष्ठिर से वार्तालाप करना और बारंबार उनका कुशल मंगल पूछना। तात! तुम बलवानों में श्रेष्ठ महाभाग भगवान श्रीकृष्ण से भी मिलकर मेरी ओर से उनका कुशल समाचार पूछना और यह बताना कि धृतराष्ट्र पाण्डवों के साथ शान्ति पूर्वक बर्ताब चाहते हैं। सूत! कुन्तीकुमार युधिष्ठिर भगवान श्रीकृष्ण की कोई बात टाल नहीं सकते। क्योंकि श्रीकृष्ण इनको आत्मा के समान प्रिय हैं। श्रीकृष्ण विद्वान हैं और सदा पाण्डवों के हित के लिये कार्य में लगे रहते हैं। संजय! तुम वहाँ एकत्र हुए पाण्डवों तथा सृञ्ज्यवंशी क्षत्रियों से और श्रीकृष्ण, सात्यकि, राजा विराट एवं द्रौपदी के पांचो पुत्रों से भी मेरी ओर से स्वास्थ्य का समाचार पूछना। इसके सिवा जैसा अवसर हो और जिसमें तुम्हें भरतवंशियों का हित प्रतीत हो, जैसी बातें पाण्डव पक्ष के लोगों से कहना। राजाओं के बीच में ऐसा कोई वचन न कहना, जो उनके क्रोध को बढ़ावे तथा युद्ध का कारण बने।

इस प्रकार श्रीमहाभारत के उद्योगपर्व के अन्तर्गत सेनोद्योगपर्व में पुरोहित प्रस्थान विषयक बाईसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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