महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 21 श्लोक 13-21

एकविंश (21) अध्‍याय: उद्योग पर्व (सेनोद्योग पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: एकविंश अध्याय: श्लोक 13-21 का हिन्दी अनुवाद

'यदि पाण्डव अपने बाप-दादाओं का राज्य लेना चाहते हैं तो पूर्व प्रतिज्ञा के अनुसार उतने समय तक पुनः वन में निवास करें।' 'तत्पश्चात वे दुर्योधन के आश्रय में निर्भय हो कर रह सकते हैं। केवल मूर्खतावश वे अपनी बुद्धि को अर्धमपरायण न बनावें।' 'यदि पाण्डव धर्म को त्याग कर युद्ध ही करना चाहते हैं तो इन कुरुश्रेष्ठ वीरों से भिड़ने पर मेरी बात याद करेंगे।' भीष्म जी बोले- राधानंदन! तू जो इस प्रकार बढ़-बढ़कर बातें बनाता है, इससे क्या होगा? तुझे पार्थ का वह पराक्रम याद करना चाहिये, जबकि विराट नगर के युद्ध में उन्होंने अकेले ही सम्पूर्ण सेना सहित छ: अतिरथियों को जीत लिया था। तेरा पराक्रम तो उसी समय देखा गया था,जबकि अनेक बार उनके सामने जाकर तुझे परास्त होना पड़ा। इन ब्राह्मण देवता ने जो कुछ कहा है, यदि हम लोग तदनुसार कार्य नहीं करेंगे तो यह निश्चय है कि युद्ध में पाण्डुनन्दन अर्जुन के हाथ से आहत होकर हमें धूल खानी पड़ेगी।

वैशम्पायन जी कहते हैं- तदनन्तर धृतराष्ट्र ने कर्ण को डांटकर भीष्म जी का सम्मान किया और उन्हें राजी करके इस प्रकार कहा- 'शान्तनुनन्दन भीष्म ने हमारे लिये यह हितकर बात कही है। इसमें पाण्डवों का तथा सम्पूर्ण जगत का भी हित है।' ‘ब्रह्मन्! अब मैं कुछ सोच विचारकर पाण्डवों के पास संजय को भेजुंगा। आप पुनः पाण्डवों के पास ही पधारें, विलम्ब न करें। तदनन्तर राजा धृतराष्ट्र ने उन ब्राह्मण का सत्कार करके उन्हें पाण्डवों के पास वापस भेजा और सभा में संजय को बुलाकर यह बात कही।

इस प्रकार श्रीमहाभारत के उद्योगपर्व के अन्तर्गत सेनोद्योगपर्व में पुरोहित प्रस्थान विषयक इकीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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