द्विनवत्यधिकशततम (192) अध्याय: उद्योग पर्व (अम्बोपाख्यान पर्व)
महाभारत: उद्योग पर्व: द्विनवत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 22-42 का हिन्दी अनुवाद
इस प्रकार पुरोहित ने मन्त्रियों के बीच में बैठे हुए राजा द्रुपद से दशार्णराज का कहा हुआ उपालम्भयुक्त संदेश सुनाया।भरतश्रेष्ठ! तब राजा द्रुपद प्रेम से विनीत हो गये और इस प्रकार बोले- ‘ब्रह्मन! आपने मेरे सम्बन्धी के कथनानुसार जो बात मुझे सुनायी है, इसका उत्तर मेरा दूत स्वयं जाकर राजा को देगा’। तदनन्तर द्रुपद ने भी महामना हिरण्यवर्मा के पास वेदों के पारंगत विद्वान ब्राह्मण को दूत बनाकर भेजा। राजन! उन्होंने दशार्णनरेश के पास आकर द्रुपद ने जो कुछ कहा था, वह सब दुहरा दिया।‘राजन! आप आकर स्पष्टरूप से परीक्षा कर लें। मेरा यह कुमार पुत्र है कन्या नहीं। आपसे किसी ने झुठे ही उसके कन्या होने की बात कह दी है, जो विश्वास करने के योग्य नहीं है’। राजा द्रुपद का यह उत्तर सुनकर हिरण्यवर्मा ने कुछ विचार किया और अत्यन्त मनोहर रूप वाली कुछ श्रेष्ठ युवतियों को यह जानने के लिये भेजा कि शिखण्डी स्त्री है या पुरुष। कौरवराज! उन भेजी हुई युवतियों ने वास्तविक बात जानकर राजा हिरण्यवर्मा को बड़ी प्रसन्नता के साथ सब कुछ बता दिया। उन्होंने दशार्णराज को यह विश्वास दिला दिया कि शिखण्डी महान प्रभावशाली पुरुष है। इस प्रकार परीक्षा करके राजा हिरण्यवर्मा बड़े प्रसन्न हुए। फिर उन्होंने सम्बन्धी से मिलकर बड़े हर्ष और उल्लास के साथ वहाँ निवास किया। राजा ने अत्यन्त प्रसन्न होकर अपने जामाता शिखण्डी को भी बहुत धन, हाथी, घोडे़, गाय, बैल और दासियां दीं। इतना ही नहीं, उन्होंने झूठी खबर भेजने के कारण अपनी पुत्री को भी झिड़कियां दीं। फिर वे राजा द्रुपद से सम्मानित होकर लौट गये। मनोमालिन्य दूर करके दशार्णराज हिरण्यवर्मा के प्रसन्नतापूर्वक लौट जाने पर शिखण्डिनी को भी बड़ा हर्ष हुआ। उधर कुछ काल के पश्चात नरवाहन कुबेर लोक में भ्रमण करते हुए स्थूणाकर्ण के घर पर आये। उसके घर के ऊपर आकाश में स्थित होकर धनाध्यक्ष कुबेर ने उसका अच्छी तरह अवलोकन किया। स्थूणाकर्ण यक्ष का वह भवन विचित्र हारों से सजाया गया था। खश की और अन्य पदार्थों की सुगन्ध से भी अर्चित तथा चंदोवों से सुशोभित था। उसमें सब ओर धूप की सुगन्ध फैली हुई थी। अनेकानेक ध्वज और पताकाएं उसकी शोभा बढा़ रही थीं। वहाँ भक्ष्य, भोज्य, पेय आदि सभी वस्तुएं, जिनका दन्त और जिह्वा द्वारा उदराग्नि में हवन किया जाता है, प्रस्तुत थीं। तत्पश्चात कुबेर ने उस भवन में प्रवेश किया। कुबेर ने उसके निवास स्थान को सब ओर से सुसज्जित, मणि, रत्न तथा सुवर्ण की मालाओं से परिपूर्ण, भाँति-भाँति के पुष्पों की सुगन्ध से व्याप्त तथा झाड़-बुहार और धो-पोंछ देने-के कारण शोभासम्पन्न देखकर यक्षराज ने स्थूणाकर्ण के सेवकों से पूछा- ‘अमित पराक्रमी यक्षो! स्थूणाकर्ण का यह भवन तो सब प्रकार से सजाया हुआ दिखायी देता है, इससे सिद्ध है कि वह घर में ही है, तथापि वह मूर्ख मेरे पास आता क्यों नहीं है? ‘वह मन्दबुद्धि यक्ष मुझे आया हुआ जानकर भी मेरे निकट नहीं आ रहा है; इसलिये उसे महान दण्ड देना चाहिये, ऐसा मेरा विचार है।' यक्षों ने कहा- राजन! राजा द्रुपद के यहाँ एक शिखण्डिनी नाम की कन्या उत्पन्न हुई है। उसी को किसी विशेष कारणवश इन्होंने अपना पुरुषत्व दे दिया है और उसका स्त्रीत्व स्वयं ग्रहण कर लिया है। तब से वे स्त्रीरूप होकर घर में ही रहते हैं। स्त्रीरूप में होने के कारण ही वे लज्जावश आप के पास नहीं आ रहे हैं। महाराज! इसी कारण से स्थूणाकर्ण आज आपके सामने नहीं उपस्थित हो रहे हैं। यह सुनकर आप जैसा उचित समझें, करें। आज आपका विमान यहीं रहना चाहिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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