अष्टादश (18) अध्याय: उद्योग पर्व (सेनोद्योग पर्व)
महाभारत: उद्योग पर्व: अष्टादश अध्याय: श्लोक 21-25 का हिन्दी अनुवाद
वैशम्पायनजी कहते हैं- भरत श्रेष्ठ जनमेजय! शल्य के इस प्रकार आश्वासन देने पर धर्मात्माओं में श्रेष्ठ युधिष्ठिर ने उनका विधिपूर्वक पूजन किया। शल्य की बात सुनकर कुन्ती पुत्र महाबाहु युधिष्ठिर मद्रराज से यह वचन बोले- मामाजी! जब कर्ण के साथ अर्जुन का युद्ध होगा, उस समय आप कर्ण का सारथ्य करेंगे, इसमें संशय नही है। उस समय आप अर्जुन की प्रशंसा करके कर्ण के तेज और उत्साह का नाश करें (यहीं मेरा अनुरोध है)। शल्य बोले- राजन! तुम जैसा कह रहे हो, ऐसा ही करूँगा और भी ( तुम्हारे हित के लिये ) जो कुछ मुझसे हो सकेगा, वह सब तुम्हारे लिये करूँगा। वैशम्पायन जी कहते हैं- शत्रुदमन जनमेजय! तदनन्तर समस्त कुन्तीकुमारों से विदा लेकर श्रीमान मद्रराज शल्य अपनी सेना के साथ दुर्योधन के यहाँ चले गये। इस प्रकार श्रीमहाभारत के उद्योगपर्व के अन्तर्गत सेनोद्योगपर्व में पुरोहित प्रस्थान विषयक अठारहवाँ अध्याय पूरा हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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