महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 167 श्लोक 22-38

सप्‍तटषष्‍टयधिकशततम (167) अध्‍याय: उद्योग पर्व (रथातिरथसंख्‍या पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: सप्‍तटषष्‍टयधिकशततम अध्याय: श्लोक 22-38 का हिन्दी अनुवाद
  • राजेन्‍द्र! उनके सैनिक विचित्र कवच और अस्‍त्र-शस्‍त्र धारण करके तुम्‍हारे शत्रुओं का संहार करते हुए संग्राम भूमि में विचरण करेंगे। (22)
  • कर्ण का पुत्र वृषसेन तुम्‍हारे वैरियों की विशाल वाहिनी को भस्‍म कर डालेगा। (23)
  • राजन! शत्रुवीरों का संहार करने वाले मधुवंशी महातेजस्‍वी जलसंध तुम्‍हारी सेना में श्रेष्‍ठ रथी हैं। ये तुम्‍हारे लिये युद्ध में प्राण तक दे डालेंगे। (24)
  • महाबाहु जलसंध रथ अथवा पीठ पर बैठकर युद्ध करने में कुशल है। ये संग्राम में शत्रु सेना का संहार करते हुए लड़ेंगे। (25)
  • महाराज! नृपश्रेष्‍ठ! ये मेरे रथी ही हैं और इस महायुद्ध में तुम्‍हारे लिये अपनी सेना सहित प्राण त्‍याग करेंगे। (26)
  • राजन! ये समरांगण में महान पराक्रम प्रकट करते हुए‍ विचित्र ढंग से युद्ध करने वाले हैं। ये तुम्‍हारे शत्रुओं के साथ निर्भय होकर युद्ध करेंगे। (27)
  • वाह्लीक अतिरथी वीर हैं। ये युद्ध से कभी पीछे नहीं हटते हैं। राजन! मैं समरभूमि में इन्‍हें यमराज के समान शूरवीर मानता हूँ। (28)
  • ये रणक्षेत्र में पहुँचकर किसी तरह पीछे पैर नहीं हटा सकते। राजन! ये वायु के समान वेग से रणभूमि में शत्रुओं को मारेंगे। (29)
  • माहराज! रथारूढ़ हो युद्ध में अद्भुत पराक्रम दिखाने और शत्रु पक्ष के रथियों को मार भगाने वाले तुम्‍हारे सेनापति सत्यवान भी महारथी हैं। (30)
  • युद्ध देखकर इनके मन में किसी प्रकार भी भय एवं दुख नहीं होता। ये रथ के मार्ग में खड़े हुए शत्रुओं पर हंसते-हंसते कूद पड़ते हैं। (31)
  • पुरुषश्रेष्‍ठ सत्‍यवान शत्रुओं पर महान पराक्रम दिखाते हैं। ये युद्ध में तुम्‍हारे लिये श्रेष्‍ठ पुरुषों के योग्‍य महान कर्म करेंगे। (32)
  • क्रूरकर्मा राक्षसराज अलम्बुष भी महारथी है। राजन! यह पहले के वैर को याद करके शत्रुओं का संहार करेगा। (33)
  • मायावी, वैरभाव को द्रढ़तापूर्वक सुरक्षित रखने वाला तथा समस्‍त सैनिकों में श्रेष्‍ठ रथी यह अलम्‍बुष संग्रामभूमि में निर्भय होकर विचरेगा। (34)
  • प्राग्ज्‍योतिषपुर के राजा भगदत्त बड़े वीर और प्रतापी हैं। हाथ मे अंकुश लेकर हाथियों को काबू में रखने वाले वीरों में इनका सबसे ऊँचा स्‍थान है। ये रथ युद्ध में भी कुशल हैं। (35)
  • राजन! पहले इनके साथ गाण्‍डीवधारी अर्जुन का युद्ध हुआ था। उस संग्राम में दोनों अपनी-अपनी विजय चाहते हुए बहुत दिनों तक लड़ते रहे। (36)
  • गान्‍धारीकुमार! कुछ दिनों बाद भगदत्त ने अपने सखा इन्‍द्र का सम्‍मान करते हुए महात्‍मा पाण्‍डून्‍न्‍दन अर्जुन के साथ संधि कर ली थी। (37)
  • राजा भगदत्त हाथी की पीठ पर बैठकर युद्ध करने में अत्‍यन्‍त कुशल हैं। ये ऐरावत पर बैठे हुए देवराज इन्‍द्र के समान संग्राम में तुम्‍हारे शत्रुओं के साथ युद्ध करेंगे। (38)
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योग पर्व के अन्‍तर्गत रथातिरथसंख्‍यान पर्व में एक सौ सडसठवां अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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