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महाभारत: उद्योग पर्व: त्रिष्टयधिकशततम अध्याय: श्लोक 17-41 का हिन्दी अनुवाद
- तत्पश्चात शिखण्डी ने उलूक से इस प्रकार कहा- उलूक! सदा पाप में ही तत्पर रहने वाले अपने राजा के पास जाकर तू इस प्रकार कहना- (42)
- राजन! तुम संग्राम में मुझे भयानक कर्म करते हुए देखना। जिसके पराक्रम का भरोसा करके तुम युद्ध में अपनी विजय हुई मानते हो, तुम्हारे उस पितामह को मैं रथ से मार गिराऊँगा। (43)
- निश्चय ही महामना विधाता ने भीष्म के वध के लिये ही मेरी सृष्टि की है। अत: मैं समस्त धनुर्धरों के देखते-देखते भीष्म को मार डालूंगा। (44)
- इसके बाद धृष्टद्युम्न ने भी कितबकुमार उलूक से यह बात कही- उलूक! तू राजपुत्र दुर्योधन से मेरी यह बात कह देना, मैं द्रोणाचार्य को उनके गणों और बन्धु-बान्धवों सहित मार डालूंगा। (45)
- मुझे अपने पूर्वजों के महान चरित्र का अनुकरण अवश्य करना चाहिये। अत: मैं युद्ध में वह पराक्रम कर दिखाऊंगा, जैसा दूसरा कोई नहीं करेगा। (47)
- तदनन्तर धर्मराज युधिष्ठिर ने करुणावश फिर यह महत्वपूर्ण बात कही- राजन! मैं किसी प्रकार भी अपने कुटुम्बियों का वध नहीं करना चाहता। (48)
- किंतु दुर्बुद्धे! यह सब कुछ तेरे ही दोष से प्राप्त हुआ है। तात उलूक! तेरी इच्छा हो, तो शीघ्र चला जा। अथवा तेरा कल्याण हो, तू यहीं रह; क्योंकि हम भी तेरे भाई-बन्धु ही हैं। (49)
- जनमेजय! तदनन्तर उलूक धर्मपुत्र राजा युधिष्ठिर से विदा ले जहाँ राजा दुर्योधन था, वहीं चला गया। (50)
- वहाँ आकर उलूक ने अमर्षशील दुर्योधन को अर्जुन का सारा संदेश ज्यों-का-त्यों सुना दिया। इसी प्रकार उसने भगवान श्रीकृष्ण, भीमसेन और धर्मराज युधिष्ठिर की पुरुषार्थ भरी बातों का भी वर्णन किया। (51-52)
- भारत! फिर उसने नकुल, सहदेव, विराट, द्रुपद, धृष्टद्युम्न, शिखण्डी, भगवान श्रीकृष्ण तथा अर्जुन के भी सार वचनों को ज्यों–का-त्यों सुना दिया। (53)
- भारत! उलूक का वह कथन सुनकर भरतश्रेष्ठ दुर्योधन ने दुशासन, कर्ण तथा शकुनि से कहा- (54)
- बन्धुओं! राजाओं तथा मित्रों की सेनाओं को आज्ञा दे दो, जिससे समस्त सैनिक कल सूर्योदय से पूर्व ही तैयार हो कर युद्ध के मैदानों में डट जायें। (55)
- तत्पश्चात कर्ण के भेजे हुए दूत बड़ी उतावली के साथ रथों, ऊँट-ऊँटनियों तथा अत्यन्त वेगशाली अच्छे-अच्छे घोड़ों पर सवार होकर तीव्र गति से सबको राजा की यह आज्ञा सुनाने लगे कि कल सूर्योदय से पहले ही युद्ध के लिये तैयार हो जाना चाहिये। (56-57)
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अन्तर्गत उलूक दूतागमन पर्व में उलूक के लौट जाने से सम्बन्ध रखने वाला एक सौ तिरेसठवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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