महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 143 श्लोक 45-52

त्रिचत्‍वारिंशदधिकशततम (143) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवद्-यान पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: त्रिचत्‍वारिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 45-52 का हिन्दी अनुवाद
  • 'मैं' अन्‍यान्‍य नरेश तथा यह सारा क्षत्रिय समाज सब के सब गाण्डीव की अग्नि में प्रवेश कर जायेंगे, इसमे संशय नहीं है। (45)
  • श्रीकृष्‍ण बोले-कर्ण! निश्‍चय ही अब इस पृथ्‍वी का विनाशकाल उपस्थित हो गया है। इसीलिये मेरी बात तुम्‍हारे हृदय तक नही पहुँचती है। (46)
  • तात! जब समस्‍त प्राणियों का विनाश निकट आ जाता है, तब अन्‍याय भी न्‍याय के समान प्रतीत होकर हृदय से निकल नहीं पाता है। (47)
  • कर्ण बोला‌- महाबाहु श्रीकृष्‍ण! वीर क्षत्रियों का विनाश करने वाले इस महायुद्ध से पार होकर यदि हम जीवित बच गये तो पुन: आपका दर्शन करेंगे। (48)
  • अथवा श्रीकृष्‍ण! अब हम लोग स्‍वर्ग में ही मिलेंगे, यह निश्चित है। वहाँ आज की ही भाँति पुन: आपसे हमारी भेंट होगी। (49)
  • संजय कहते हैं- ऐसा कहकर कर्ण भगवान श्रीकृष्‍ण का प्रगाढ़ आलिंगन करके उनसे विदा लेकर रथ के पिछले भाग से उतर गया। (50)
  • तदनन्‍तर अपने सुवर्णभूषित रथ पर आरूढ़ हो राधा-नन्‍दन कर्ण दीनचित्‍त होकर हम लोगों के साथ लौट आया। (51)
  • तदनंतर सात्यकि सहित श्रीकृष्ण सारथि से बार-बार 'चलो-चलो' ऐसा कहते हुए अत्यन्त तीव्र गति से उपप्लव्य नगर की ओर चल दिये (52)
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योग पर्व के एक सौ तैंतालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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