त्रयोदश (13) अध्याय: उद्योग पर्व (सेनोद्योग पर्व)
महाभारत: उद्योग पर्व: त्रयोदश अध्याय: श्लोक 22-27 का हिन्दी अनुवाद
तदनन्तर शचीपति इन्द्रदेव पुनः सबकी आँखों से ओझल हो गये तथा अनुकूल समय की प्रतीक्षा करते हुए समस्त प्राणियों से अदृश्य रहकर विचरने लगे। इन्द्र के पुनः अदृश्य हो जाने पर शची देवी शोक में डूब गयीं और अत्यन्त दुखी हो 'हा इन्द्र! हा इन्द्र!' कहती हुई विलाप करने लगीं। तत्पश्चात वे इस प्रकार बोलीं- 'यदि मैंने दान दिया हो, होम किया हो, गुरुजनों को संतुष्ट रखा हो तथा मुझमें सत्य विद्यमान हो, तो मेरा पातिव्रत्य सुरक्षित रहे। 'उत्तरायण के दिन जो यह पुण्य एवं दिव्य रात्रि आ रही है, उसकी अधिष्ठात्री देवी रात्रि को मैं नमस्कार करती हूँ, मेरा मनोरथ सफल हो।' ऐसा कहकर शची ने मन और इन्द्रियों को संयम में रखकर रात्रि देवी की उपासना की। पतिव्रता तथा सत्यपरायणा होने के कारण उन्होंने उपश्रुति नामावली रात्रिदेवी का आवाहन किया और उनसे कहा- 'देवि! जहाँ देवराज इन्द्र हों, वह स्थान मुझे दिखाइये। सत्य का सत्य से ही दर्शन होता है।' इस प्रकार श्रीमहाभारत के उद्योगपर्व के अन्तर्गत सेनोद्योगपर्व में पुरोहित प्रस्थान विषयक तेरहवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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