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महाभारत: उद्योग पर्व: त्रिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 36-53 का हिन्दी अनुवाद
- ‘सुनता हूँ, तू अपने पापी सहायकों से मिलकर इन दुर्धर्ष एवं दुर्जय वीर कमलनयन श्रीकृष्ण को कैद करना चाहता है। (36)
- ‘ओ मूढ़! इंद्र सहित सम्पूर्ण देवता भी जिन्हें बलपूर्वक अपने वश में नहीं कर सकते, उन्हीं को तू बंदी बनाना चाहता है। तेरी यह चेष्टा वैसी ही है, जैसे कोई बालक चंद्रमा को पकड़ना चाहता हो। (37)
- ‘देवता, मनुष्य, गंधर्व, असुर और नाग भी संग्राम भूमि में जिनका वेग नहीं सह सकते, उन भगवान श्रीकृष्ण को तू नहीं जानता। (38)
- ‘जैसे वायु को हाथ से पकड़ना दुष्कर है, चंद्रमा को हाथ से छूना कठिन है और पृथ्वी को सिर पर धारण करना असंभव है, उसी प्रकार भगवान श्रीकृष्ण को बलपूर्वक पकड़ना दुष्कर है।' (39)
- धृतराष्ट्र के ऐसा कहने पर विदुर ने भी अमर्ष में भरे हुए धृतराष्ट्र पुत्र दुर्योधन के पास जाकर इस प्रकार कहा। (40)
- विदुर बोले- दुर्योधन! इस समय मेरी बात पर ध्यान दो। सौभद्वार में द्विविद नाम से प्रसिद्ध एक वानरों का राजा रहता था, जिसने एक दिन पत्थरों की बड़ी भारी वर्षा करके भगवान श्रीकृष्ण को आच्छादित दिया। (41)
- वह पराक्रम करके सभी उपायों से श्रीकृष्ण को पकड़ना चाहता था, परंतु इन्हें कभी पकड़ न सका। उन्हीं श्रीकृष्ण को तुम बलपूर्वक अपने वश में करना चाहते हो। (42)
- पहले की बात है, प्रागज्योतिषपुर में गए हुए श्रीकृष्ण को दानवों सहित नरकासुर ने भी वहाँ बंदी बनाने की चेष्टा की, परंतु वह भी वहाँ सफल न हो सका। उन्हीं को तुम बलपूर्वक अपने वश में करना चाहते हो। (43)
- अनेक युगों तथा असंख्य वर्षों की आयु वाले नरकासुर को युद्ध में मारकर श्रीकृष्ण उसके यहाँ से सहस्रों राजकन्याओं को उद्धार करके ले गए और उन सबके साथ उन्होंने विधिपूर्वक विवाह किया। (44)
- निर्मोचन में छ: हजार बड़े-बड़े असुरों को भगवान ने पाशों में बाँध लिया। वे असुर भी जिन्हें बंदी न बना सके, उन्हीं को तुम बलपूर्वक वश में करना चाहते हो। (45)
- भरतश्रेष्ठ! इन्होंने ही बाल्यावस्था में बकी पूतना का वध किया था और गौओं की रक्षा के लिए अपने हाथ पर गोवर्धन पर्वत को धारण किया था। (46)
- अरिष्टासुर, धेनुक, महाबली चानूर, अश्वराज केशी और कंस भी लोकहित के विरुद्ध आचरण करने पर श्रीकृष्ण के ही हाथ से मारे गए थे। (47)
- जरासंध, दंतवक्र, पराक्रमी शिशुपाल और बाणासुर भी इन्हीं के हाथों से मारे गए हैं तथा अन्य बहुत से राजाओं का भी इन्होंने ही संहार किया है। (48)
- अमित तेजस्वी श्रीकृष्ण ने राजा वरुण पर विजय पायी है। इन्होंने अग्निदेव को भी पराजित किया है और पारिजात हरण करते समय साक्षात शचीपति इन्द्र को भी जीता है। (49)
- इन्होंने एकार्णव के जल में सोते समय मधु और कैटभ नामक दैत्यों को मारा था और दूसरा शरीर धारण करके हयग्रीव नामक राक्षस का भी इन्होंने ही वध किया था। (50)
- ये ही सबके करता हैं, इनका दूसरा कोई करता नहीं है। सबके पुरुषार्थ के कारण भी यही हैं। ये भगवान श्रीकृष्ण जो-जो इच्छा करें, वह सब अनायास ही कर सकते हैं। (51)
- अपनी महिमा से कभी च्युत न होने वाले इन भगवान गोविंद का पराक्रम भयंकर है। तुम इन्हें अच्छी तरह नहीं जानते। ये क्रोध में भरे हुए विषधर सर्प के समान भयानक हैं। ये सत्पुरुषों द्वारा प्रशंसित एवं तेज की राशि हैं। (52)
- अनायास ही महान पराक्रम करने वाले महाबाहु भगवान श्रीकृष्ण का तिरस्कार करने पर तुम अपने मंत्रियों सहित उसी प्रकार नष्ट हो जाओगे, जैसे पतंग आग में पड़कर भस्म हो जाता है। (53)
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योग पर्व के अंतर्गत भगवादयानपर्व में विदुर वाक्य विषयक एक सौ तीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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