महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 125 श्लोक 20-27

पंचविंशत्यधिकशततम (125) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवादयान पर्व)

Prev.png

महाभारत: उद्योग पर्व: पंचविंशत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 20-27 का हिन्दी अनुवाद
  • ‘क्योंकि ये दोनों तुम-जैसे दुष्ट सहायक के कारण मित्रों और मंत्रियों के मारे जाने पर पंख कटे हुए पक्षियों की भाँति अनाथ [1] होकर विचरेंगे। (20)
  • ‘तुम्हारे जैसे पापी और कुलघाती कुपुरुष पुत्र को जन्म देने के कारण ये दोनों शोकमग्न हो भिक्षुक की भाँति इस पृथ्वी पर इधर-उधर भटकते फिरेंगे।’ (21)
  • तत्पश्चात राजा धृतराष्ट्र ने राजाओं से घिरकर भाइयों के साथ बैठे हुए दुर्योधन से कहा- (22)
  • ‘दुर्योधन! मेरी इस बात पर ध्यान दो। महात्मा श्रीकृष्ण ने जो बात बताई है, वह अत्यंत कल्याणकारक, योगक्षेम की प्राप्ति कराने वाली तथा दीर्घकाल तक स्थिर रहने वाली है, तुम इसे स्वीकार करो। (23)
  • ‘अनायास ही महान कर्म करने वाले इन भगवान श्रीकृष्ण की सहायता से हम लोग समस्त राजाओं में सम्मानित रहकर अपने सभी अभीष्ट मनोरथों को प्राप्त कर लेंगे। (24)
  • ‘तात! भगवान श्रीक़ृष्ण से मिलकर तुम युधिष्ठिर के पास जाओ और पूर्ण रूप से मंगल सम्पादन करो, जिससे भरतवंशियों को कोई क्षति न उठानी पड़े। (25)
  • ‘तात! भगवान श्रीक़ृष्ण को मध्यस्थ बनाकर अब शांति धारण करो। मैं तुम्हारे लिए यही समयोचित कर्तव्य मानता हूँ। दुर्योधन! तुम मेरी इस आज्ञा का उल्लंघन न करो। (26)
  • ‘यदि तुम शांति के लिए प्रार्थना करने वाले भगवान श्रीक़ृष्ण का जो तुम्हारे हित की बात बता रहे हैं, तिरस्कार करोगे- इनकी आज्ञा नहीं मानोगे तो तुम्हारा पराभव हुए बिना नहीं रह सकता।’ (27)
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अंतर्गत भगवादयानपर्व में भीष्म आदि के वचनों से संबंध रखनेवाला एक सौ पच्चीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. असहाय

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः