महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 123 श्लोक 17-23

त्रयोविंशत्यधिकशततम (123) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवादयान पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: त्रयोविंशत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 17-23 का हिन्दी अनुवाद
  • राजन! तुम्हें ऊँचे, नीचे एवं मध्यम वर्ग के लोगों का कभी अपमान नहीं करना चाहिए। जो लोग अभिमान की आग में जल रहे हैं, उनके उस संताप को शांत करने का कहीं कोई उपाय नहीं है। (17)
  • जो मनुष्य तुम्हारे स्वर्ग से गिरने और पुन: आरूढ़ होने के इस वृतांत को आपस में कहें-सुनेंगे, वे संकट में पड़ने पर भी उससे पार हो जाएँगे; इसमें संशय नहीं है। (18)
  • नारदजी कहते हैं- राजन! इस प्रकार पूर्वकाल में राजा ययाति अपने अभिमान के कारण संकट में पड़ गये थे और अत्यंत आग्रह एवं हठ के कारण महर्षि गालव को भी महान क्लेश सहन करना पड़ा था। (19)
  • अत: तुम्हें तुम्हारे हित की इच्छा रखने वाले सुहृदों की बात अवश्य सुननी और माननी चाहिए। दुराग्रह कभी नहीं करना चाहिए, क्योंकि वह विनाश के पथ पर ले जाने वाला है। (20)
  • अत: गांधारीनंदन! तुम भी अभिमान और क्रोध को त्याग दो। वीर नरेश! तुम पांडवों से संधि कर लो और क्रोध के आवेश को सदा के लिए छोड़ दो। (21)
  • तुम अपने सुहृदों के हितकर वचन मान लो। असत्य आचरण को न अपनाओ, अन्यथा शक्तिशाली पांडवों के साथ युद्ध ठानकर तुम बड़े भारी संकट में पड़ जाओगे।
  • भूपाल! मनुष्य जो दान देता है, जो कर्म करता है, जो तपस्या में प्रवृत होता है और जो होम-यज्ञ आदि का अनुष्ठान करता है, उसके इस कर्म का न तो नाश होता है और न उसमें कोई कमी ही होती है। उसके कर्म को दूसरा कोई नहीं भोगता। कर्ता स्वयं ही अपने शुभाशुभ कर्मों का फल भोगता है। (22)
  • यह महत्त्वपूर्ण उपाख्यान उन महापुरुषों का है, जो अनेक शास्त्रों के ज्ञाता तथा रोष और राग से रहित थे। यह सबके लिए परम उत्तम और हितकर है। लोक में इस पर नाना प्रकार से विचार करके निश्चित किए हुए सिद्धान्त को अपनाकर धर्म, अर्थ और काम पर दृष्टि रखने वाला पुरुष इस पृथ्वी का उपभोग करता है। (23)


इस प्रकार श्रीमहाभारत उद़धोग पर्व के अन्‍तर्गत भगवद़धान पर्व में गालव चरित्र विषयक एक सौ तेईसवां अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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