महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 111 श्लोक 18-28

एकादशाधिकशततम (111) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवादयान पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: एकादशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 18-28 का हिन्दी अनुवाद
  • द्विजश्रेष्ठ! मनुष्य ज्यों-ज्यों गंगामहाद्वार से आगे बढ़ता है, वैसे-ही-वैसे वहाँ की हिमराशि में गलता जाता है। विप्रवर गालव! साक्षात भगवान नारायण तथा विजयशील अविनाशी महात्मा नर को छोड़कर दूसरा कोई मनुष्य पहले कभी गंगामहाद्वार से आगे नहीं गया है। इसी दिशा में कैलास पर्वत है, जो कुबेर का स्थान बताया गया है। (18)
  • यहीं विद्युत्प्रभा नाम से प्रसिद्ध दस अप्सराएँ उत्पन्न हुई थीं। ब्रह्मण! त्रिलोकी को नापते समय भगवान विष्णु ने इसी दिशा में अपना चरण रखा था। उत्तर दिशा में भगवान विष्णु का वह चरणचिह्न [1] आज भी मौजूद है। द्विजश्रेष्ठ! ब्रह्मर्षे! उत्तर दिशा के ही उशीरबीज नामक स्थान में, जहाँ सुवर्णमय सरोवर है, राजा मरुत्त ने यज्ञ किया था। (21-22)
  • इसी दिशा में ब्रह्मर्षि महात्मा जीमूत के समक्ष हिमालय की पवित्र एवं निर्मल स्वर्णनिधि[2] प्रकट हुई थी। (23)
  • उस सम्पूर्ण विशाल धनराशि को उन्होंने ब्राह्मणों में बाँट कर उसका सदुपयोग किया और ब्राह्मणों से यह वर मांगा कि यह धन मेरे नाम से प्रसिद्ध हो। इस कारण वह धन 'जैमूत' नाम से प्रसिद्ध हुआ। (24)
  • विप्रवर गालव! यहाँ प्रतिदिन सबेरे और संध्या के समय सभी दिक्पाल एकत्र हो उच्च स्वर से यह पूछते हैं कि किसको क्या काम है? (25)
  • द्विजश्रेष्ठ! इन सब कारणों से तथा अन्यान्य गुणों के कारण यह दिशा उत्कृष्ट है और समस्त शुभ कर्मों के लिए भी यही उत्तम मानी गयी है। इसलिए इसे उत्तर कहते हैं। (26)
  • तात! इस प्रकार मैंने क्रमश: चारों दिशाओं का तुम्हारे सामने विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। कहो, किस दिशा में चलना चाहते हो? (27)
  • द्विजश्रेष्ठ! मैं तुम्हें सम्पूर्ण पृथ्वी तथा समस्त दिशाओं का दर्शन कराने के लिए उद्यत हूँ; अत: तुम मेरी पीठ पर बैठ जाओ। (28)

इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अंतर्गत भगवदयानपर्व में गालव चरित्र विषयक एक सौ ग्यारहवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हरी की पैड़ी
  2. सोने की खान

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