महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 105 श्लोक 36-40

पंचधिकशततम (105) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवादयान पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: पंचधिकशततम अध्याय: श्लोक 36-40 का हिन्दी अनुवाद
  • अत: राजकुमार! इस विरोध से तुम्हें कुछ मिलने वाला नहीं है। पांडवों के साथ संधि कर लो। भगवान श्रीकृष्ण को सहायक बनाकर इनके द्वारा तुम्हें अपने कुल की रक्षा करनी चाहिए। (36)
  • इन महातपस्वी नारद जी ने उस समय भगवान विष्णु के माहात्म्य को प्रत्यक्ष देखा था। वे चक्र और गदा धारण करने वाले भगवान विष्णु ही ये 'श्रीकृष्ण' हैं। (37)
  • वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! कण्व का वह कथन सुनकर दुर्योधन की भौहें तन गईं। वह लंबी सांस खींचता हुआ राधानन्दन कर्ण की ओर देखकर ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगा। (38)
  • उस दुर्बुद्धि ने कण्व मुनि के वचनों की अवहेलना करके हाथी की सूंड के समान चढ़ाव-उतार वाली अपनी मोटी जांघ पर हाथ पीटकर इस प्रकार कहा- (39)
  • महर्षे! मुझे ईश्वर ने जैसा बनाया है, जो होनहार है और जैसी मेरी अवस्था में है, उसी के अनुसार मैं बर्ताव करता हूँ। आप लोगों का यह प्रलाप क्या करेगा?

(40) इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अंतर्गत भगवदयानपर्व में मातलि के द्वारा वर की खोज विषयक एक सौ पाँचवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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