महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 104 श्लोक 18-30

चतुरधिकशततम (104) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवादयान पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: चतुरधिकशततम अध्याय: श्लोक 18-30 का हिन्दी अनुवाद
  • कण्व मुनि कहते हैं- राजन! तब मातलि ने आर्यक से कहा- मैंने इस विषय में एक विचार किया है। यह तो निश्चय ही है कि मैंने आपके पौत्र को जामाता के पद पर वरण कर लिया। (18)
  • 'अत: यह नागकुमार मेरे और नारद जी के साथ त्रिलोकीनाथ देवराज इन्द्र के पास चलकर उनका दर्शन करें।(19)
  • 'साधुशिरोमणे! तदनंतर मैं अवशिष्ट कार्य द्वारा इसकी आयु के विषय में जानकारी प्राप्त करूंगा और इस बात की भी चेष्टा करूंगा कि गरुड़ इसे न मार सके। (20)
  • 'नागराज! आपका कल्याण हो। सुमुख अपने अभीष्ट कार्य की सिद्धि के लिए मेरे साथ देवराज इन्द्र के पास चले।' (21)
  • तदनंतर उन सभी महातेजस्वी सज्जनों ने सुमुख को साथ लेकर परम कांतिमान देवराज इन्द्र का दर्शन किया, जो स्वर्ग के सिंहासन पर विराजमान थे। (22)
  • दैवयोग से वहाँ चतुर्भुज भगवान विष्णु भी उपस्थित थे। तदनंतर देवर्षि नारद ने मातलि से संबंध रखने वाला सारा वृतांत कह सुनाया। (23)
  • वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! तत्पश्चात भगवान विष्णु ने लोकेश्वर इन्द्र से कहा 'देवराज! तुम सुमुख को अमृत दे दो और इसे देवताओं के समान बना दो। (24)
  • 'वासव! इस प्रकार मातलि, नारद और सुमुख ये सभी तुमसे इच्छानुसार अमृत का दान पाकर अपना यह अभीष्ट मनोरथ पूर्ण कर लें। (25)
  • तब देवराज इन्द्र ने गरुड़ के पराक्रम का विचार करके भगवान विष्णु से कहा- 'आप ही इसे उत्तम आयु प्रदान कीजिये।' (27)
  • भगवान विष्णु बोले- प्रभो! तुम संपूर्ण जगत में जितने भी चराचर प्राणी हैं, उन सबके ईश्वर हो। तुम्हारी दी हुई आयु को मिटाने का साहस कौन कर सकता है? (27)
  • तब इन्द्र ने उस नाग को अच्छी आयु प्रदान की, परंतु बलासुर और वृत्रासुर का विनाश करने वाले इन्द्र ने उसे अमृतभोजी नहीं बनाया। (28)
  • इन्द्र का वर पाकर सुमुख का मुख प्रसन्नता से खिल उठा। वह विवाह करके इच्छानुसार अपने घर को चला गया। (29)
  • नारद और आर्यक दोनों ही कृतकृत्य हो महातेजस्वी देवराज की अर्चना करके प्रसन्नतापूर्वक अपने-अपने स्थान को चले गए। (30)

इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अंतर्गत भगवदयानपर्व में मातलि के द्वारा वर की खोज विषयक एक सौ चारवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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