द्विनवतितम (92) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (वैष्णव धर्म पर्व)
महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: द्विनवतितम अध्याय: भाग-6 का हिन्दी अनुवाद
[व्यर्थ जन्म, दान और जीवन का वर्णन, सात्त्विक दोनों का लक्षण, दान का योग्य पात्र और ब्राह्मण की महिमा] वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! धर्मपुत्र राजा युधिष्ठिर इस प्रकार भगवान अच्युत के वचन सुनकर फिर भी श्री हरि से अन्य धर्म पूछने लगे- ‘पुरुषोत्तम! कितने जन्म व्यर्थ समझे जाते हैं? कितने प्रकार के दान निष्फल होते हैं? और किन-किन मनुष्यों का जीवन निरर्थक माना गया है?पुरुषोत्तम! जनार्दन! मनुष्य किस अवस्था में दिये हुए दान के फल का इस लोक में अनुभव करता है। केशव! गर्भ में स्थित हुआ मनुष्य किस दान का फल भोगता है? श्रीकृष्ण! बाल, युवा और वृद्ध- अवस्थाओं में मनुष्य किस-किस दान का फल भोगता है? भगवन! सात्विक, राजस और तामस दान कैसे होते हैं? प्रभो! उनसे किसकी तृप्ति होती है? उत्तम दान का स्वरूप क्या है? और उससे मनुष्यों को किस फल की प्राप्ति होती है? कौन-सा दान ऊर्ध्वगति को ले जाता है? कौन-सा मध्यम गति को और कौन-सा नीच गति को ले जाता है? देवाधिदेव! यह मुझे बताने की कृपा कीजिये। मधुसूदन! मैं इस विषय को जानना चाहता हूँ और इसे सुनने के लिये मेरे मन में बड़ी उत्कण्ठा है; क्योंकि आपके वचन सत्य और पुण्यमय हैं।’ श्रीभगवान ने कहा- राजन! मैं तुम्हें न्याय के अनुसार यथार्थ एवं उत्तम उपदेश सुनाता हूँ, ध्यान देकर सुनो। यह विषय परम पवित्र और सम्पूर्ण पापों को नष्ट करने वाला है। नरेश्वर! चौदह जन्म व्यर्थ समझे जाते हैं। क्रमश: पचपन प्रकार के दान निष्फल होते हैं और जिन-जिन मनुष्यों का जीवन निरर्थक होता है, उनकी संख्या छ: बतलायी गयी है। भूपाल! इन सबका मैं क्रमश: वर्णन करूँगा। जो धर्म का नाश करने वाले, लोभी, पापी, बलिवैश्वदेव किये बिना भोजन करने वाले, परस्त्रीगामी, भोजन में भेद करने वाले और असत्य भाषी हैं, उनका जन्म वृथा है। पाण्डुनन्दन युधिष्ठिर! जो बन्धु-बान्धवों को क्लेश देकर अकेले ही मिठाई खाने वाले हैं, जो माता-पिता, अध्यापक, गुरु, और मामा-मामी को मारते या गाली देते हैं। जो ब्राह्मण होकर भी संध्योपासन से रहित हैं, जो अग्निहोत्र का त्याग करने वाले हैं, जो श्राद्ध-तर्पण से दूर रहने वाले हैं, जो ब्राह्मण होकर शुद्र का अन्न खाने वाले हैं तथा जो मेरे, शंकर जी के, ब्रह्मा जी के अथवा ब्राह्मणों के भक्त नहीं हैं– ये चौदह प्रकार के मनुष्य अधम होते हैं। इन्हीं पापियों के जन्म को व्यर्थ समझना चाहिये।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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