द्विनवतितम (92) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (वैष्णवधर्म पर्व)
महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: द्विनवतितम अध्याय: भाग-37 का हिन्दी अनुवाद
युधिष्ठिर ने पूछा- दैत्यों के विनाशक देवदेवेश्वर! हव्य (यज्ञ) और कव्य (श्राद्ध)- का उत्तम समय कौन-सा है? उसमें किन ब्राह्मणों की पूजा करनी चाहिये और किनका परित्याग? श्रीभगवान ने कहा- युधिष्ठिर! देवकर्म (यज्ञ) अपरान्हकाल में- ऐसा समझना चाहिये। जो दान अयोग्य समय में किया जाता है, उस दान को राजस माना गया है। जिसके लिये लोगों में ढिंढोरा पीटा गया हो, जिसमें से किसी असत्यवादी मनुष्य ने भोजन कर लिया हो तथा जो कुत्ते से छू गया हो उस अन्न को राक्षसों का भाग समझना चाहिये। राजन! जितने पतित, जड और उन्मत ब्राह्मण हों, उनका देव-यज्ञ और पितृ-यज्ञ में सत्कार नहीं करना चाहिये। नपुंसक, प्लीहा रोग से ग्रस्त, कोढ़ी और राजयक्ष्मा तथा मृगी का रोगी भी श्राद्ध में आदर के योग्य नहीं माना गया है। वैद्य, पुजारी, झूठे नियम धारण करने वाले (पाखण्डी) तथा सोमरस बेचने वाले ब्राह्मण श्राद्ध में सत्कार पाने के अधिकारी नहीं हैं। गवैये, नाचने- कूदने वाले, बाजा बजाने वाले, बकवादी और योद्धा श्राद्ध में सत्कार के योग्य नहीं है। राजन! अग्निहोत्र न करने वाले, मुर्दा ढोने वाले, चोरी करने वाले और शास्त्रविरुद्ध कर्म से संलग्न रहने वाले ब्राह्मण भी श्राद्ध में सत्कार पाने योग्य नहीं माने जाते। जो अपरिचित हो, जो किसी समुदाय के पुत्र हो, अर्थात जिनके पिता का निश्चित पता न हो तथा जो पुत्रिका-धर्म के अनुसार नाना के घर में रहते हों, वे ब्राह्मण भी श्राद्ध के अधिकारी नहीं हैं। युद्ध में लड़ने वाला, रोजगार करने वाला तथा पशु-पक्षियों की विक्री से जीविका चलाने वाला ब्राह्मण भी श्राद्ध में सत्कार पाने का अधिकारी नहीं है। परंतु जो ब्राह्मण व्रत का आचरण करने वाले, गुणवान, सदा स्वाध्यायपरायण, गायत्री मन्त्र के ज्ञाता और क्रियानिष्ठ हों, वे श्राद्ध में सत्कार के योग्य माने गये हैं। श्राद्ध का सबसे उत्तम काल है सुपात्र ब्राह्मण का मिलना। जिस समय भी ब्राह्मण, दही, घी, कुशा, फूल और उत्तम क्षेत्र प्राप्त हो जायँ, उसी समय श्राद्ध का दान आरम्भ कर देना चाहिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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