महाभारत आश्‍वमेधिक पर्व अध्याय 92 वैष्णव धर्म पर्व भाग-35

द्विनवतितम (92) अध्याय: आश्‍वमेधिक पर्व (वैष्णव धर्म पर्व)

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महाभारत: आश्‍वमेधिक पर्व: द्विनवतितम अध्याय: भाग-35 का हिन्दी अनुवाद


जो मनुष्‍य अग्निहोत्र के होम के लिये अमित तेजस्‍वी एवं धनहीन श्रोत्रिय ब्राह्मण को प्रयत्‍नपूर्वक कपिला गौ दान में देता है, वह उस दान से शुद्धचित्त होकर मेरे परमधाम में प्रतिष्‍ठित होता है। जो मनुष्‍य कपिला के सींग और खुरों में सोना मढ़ाकर उसे विषुवयोग में अथवा उत्तरायण-दक्षिणायन के आरम्‍भ में दान करता है, उसे अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है तथा उस पुण्‍य के प्रभाव से वह मेरे लोक में जाता है। एक हजार अग्‍निष्‍टोम के समान एक वाजपेय-यज्ञ होता है। एक हजार वाजपेय के समान एक अश्‍वमेध होता है और एक हजार अश्‍वमेध के समान एक राजसूय-यज्ञ होता है।

कुरुश्रेष्‍ठ पाण्डव! जो मनुष्‍य शास्‍त्रोक्‍त विधि से एक हजार कपिला गौओं का दान करता है, वह राजसूय-यज्ञ का फल पाकर मेरे परमधाम में प्रतिष्‍ठित होता है; उसे पुन: इस लोक में नहीं लौटना पड़ता। दान में दी हुई गौ अपने विभिन्‍न गुणों द्वारा कामधेनु बनकर परलोक में दाता के पास पहुँचती है। वह अपने कर्मों से बंधकर घोर अन्‍धकारपूर्ण नरक में गिरते हुए मनुष्‍य का उसी प्रकार उद्धार कर देती है, जैसे वायु के सहारे से चलती हुई नाव मनुष्‍य को महासागर में डूबने ने बचाती है। जैसे मन्‍त्र के साथ दी हुई ओषधि प्रयोग करते ही मनुष्‍य के रोगों का नाश कर देती है, उसी प्रकार सुपात्र को दी हुई कपिला गौ मनुष्‍य सब पापों को तत्‍काल नष्‍ट कर डालती है। जैसे सांप केंचुल छोड़कर नये स्‍वरूप को धारण करता है, वैसे ही पुरुष कपिला गौ के दान से पाप-मुक्‍त होकर अत्‍यन्‍त शोभा को प्राप्‍त होता है। जैसे प्रज्ज्वलित दीपक घर में फैले हुए अन्‍धकार को दूर कर देता है, उसी प्रकार मनुष्‍य कपिला गौ का दान करके अपने भीतर छिपे हुए पाप को भी निकाल देता है। जो प्रतिदिन अग्‍निहोत्र करने वाला, अतिथि का प्रेमी, शूद्र के अन्‍न से दूर रहने वाला, जितेन्‍द्रीय, सत्‍यवादी तथा स्‍वाध्‍यायपरायण हो, उसे दी हुई गौ परलोक में दाता का अवश्‍य उद्धार करती है।’


(दक्षिणात्य प्रति में अध्याय समाप्त)


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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