द्विनवतितम (92) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (वैष्णव धर्म पर्व)
महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: द्विनवतितम अध्याय: भाग-3 का हिन्दी अनुवाद
वही मैं तन्मात्रारूप पंचमहाभूतों में शब्दादि पांच गुणों से स्थित हूँ। मेरे हजारों मस्तक, हजारों मुख, हजारों नेत्र, हजारों भुजाएं, हजारों उदर, हजारों ऊरु और हजारों पैर हैं। मैं पृथ्वी को सब ओर से धारण करके नाभि से दस अंगुल ऊंचे सबके हृदय में विराजमान हूँ। सम्पूर्ण प्राणियों में आत्मारूप से स्थित हूं, इसलिये सर्वव्यापी कहलाता हूँ। राजन! मैं अचिन्त्य, अन्नत, अजर, अजन्मा, अनादि, अवध्य, अप्रमेय, अव्यय, निर्गुण, गुहास्वरूप, निर्द्वन्द्व, निर्मम, निष्कल, निर्विकार और मोक्ष का आदि कारण हूँ। नरेश्वर! सुधा और स्वधा और स्वाहा भी मैं ही हूँ। मैंने ही अपने तेज और तप से चार प्रकार के प्राणि समुदाय को स्नेह पाशरूप रज्जू से बांधकर अपनी माया से धारण कर रखा है। मैं चारों आश्रमों का धर्म, चार प्रकार के होताओं से सम्पन्न होने वाले यज्ञ का फल भोगने वाला चतुर्व्यूह, चतुर्यज्ञ और चारों आश्रमों को प्रकट करने वाला हूँ। युधिष्ठिर! प्रलयकाल में समस्त जगत का संहार करके उसे अपने उदर में स्थापित कर दिव्य योग का आश्रय ले मैं एकार्णव के जल में शयन करता हूँ। एक हजार युगों तक रहने वाली ब्रह्मा की रात पूर्ण होने तक महावर्ण में शयन करने के पश्चात स्थावार-जंगम प्राणियों की सृष्टि करता हूँ। प्रत्येक कल्प में मेरे द्वारा जीवों की सृष्टि और संहार का कार्य होता है, किंतु मेरी माया से मोहित होने के कारण वे जीव मुझे नहीं जान पाते। प्रलयकाल में जब दीपक के शान्त होने की भाँति समस्त व्यक्त सृष्टि लुप्त हो जाती है, जब खोज करने योग्य मुझ अदृश्य रूप की गति का उनको पता नहीं लगता। राजन! कहीं कोई भी ऐसी वस्तु नहीं है, जिसमें मेरा निवास न हो तथा कोई ऐसा जीव नहीं है, जो मुझमें स्थित न हो। जो कुछ भी स्थूल-सूक्ष्म रूप यह जगत हो चुका है और होने वाला है, उन सबमें उसी प्रकार मैं ही जीव रूप से स्थित हूँ। अधिक कहने से क्या लाभ, मैं तुमसे यह सच्ची बात बता रहा हूँ कि भूत और भविष्य जो कुछ है, वह सब मैं ही हूँ। भरतनन्दन! सम्पूर्ण भूत मुझसे ही उत्पन्न होते हैं और मेरे ही स्वरूप हैं। फिर भी मेरी माया से मोहित रहते हैं, इसलिये मुझे नहीं जान पाते। राजन्! इस प्रकार देवता, असुर और मनुष्यों सहित समस्त संसार का मुझसे ही जन्म और मुझमें ही लय होता है।’
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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