महाभारत आश्‍वमेधिक पर्व अध्याय 92 वैष्णव धर्म पर्व भाग-17

द्विनवतितम (92) अध्याय: आश्‍वमेधिक पर्व (वैष्णवधर्म पर्व)

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महाभारत: आश्‍वमेधिक पर्व: द्विनवतितम अध्याय: भाग-2 का हिन्दी अनुवाद


जो ब्राह्मणों को छाता, जूता, शय्या, आसन, वस्त्र और आभूषण दान करते हैं, वे सोने के छत्र लगाये उत्तम गहनों से सज-धजकर घोड़े, बैल अथवा हाथी की सवारी से धर्मराज के सुन्‍दर नगर में प्रवेश करते हैं। जो सुगन्‍धित फूल और फल का दान करते हैं, वे मनुष्‍य हंसयुक्‍त विमानों के द्वारा धर्मराज के नगर में जाते हैं। जो ब्राह्मणों को घी में तैयार किये हुए भाँति-भाँति के पकवान दान करते हैं, वे वायु के समान वेग वाले सफेद विमानों पर बैठकर नाना प्राणियों से भरे हुए यमपुर की यात्रा करते हैं। जो समस्‍त प्राणियों को जीवन दान देने वाले जल का दान करते हैं, वे अत्‍यन्‍त तृप्‍त होकर हंस जुते हुए विमानों द्वारा सुखपूर्वक धर्मराज के नगर में जाते हैं।

राजन! जो लोग शान्‍त भाव से युक्त होकर श्रोत्रिय ब्राह्मण को तिल अथवा तिल की गौ या घृत की गौ का दान करते हैं, वे सूर्य मण्‍डल के समान तेजस्‍वी निर्मल विमानों द्वारा गन्‍धर्वों के गीत सुनते हुए यमराज के नगर में जाते हें। जिन्‍होंने इस लोक में बावड़ी, कुएं, तालाब, पोखरे, पोखरियां और जल से भरे हुए जलाशय बनवाये हैं, वे चन्‍द्रमा के समान उज्ज्वल और दिव्‍य घण्‍टानाद से निनादित विमानों पर बैठकर यमलोक में जाते हैं; उस समय वे महात्‍मा नित्‍य तृप्‍त और महान कान्‍तिमान दिखायी देते हैं तथा दिव्‍य लोक के पुरुष उन्‍हें ताड़ के पंखे और चंवर डुलाया करते हैं। जिनके बनवाये हुए देव मंदिर यहाँ अत्‍यंत चित्र-विचित्र, विस्तृत, मनोहर, सुंदर और दर्शनीय रूप में शोभा पाते हैं, वे सफेद बादलों के समान कान्‍तिमान एवं हवा के समान वेग वाले विमानों द्वारा नाना जनपदों से युक्‍त यमलोक की यात्रा करते हैं।

वहाँ जाने पर वे यमराज को प्रसन्‍नचित्त और सुखपूर्वक बैठे हुए देखते हैं तथा उनके द्वारा सम्‍मानित होकर देव लोक के निवासी होते हैं। खड़ाऊं और जल– दान करने वाले मनुष्‍य को उस मार्ग में सुख मिलता है। वे उत्तम रथ पर बैठकर सोने के पीढ़े पर पैर रखे हुए यात्रा करते हैं। जो लोग बड़े-बड़े बगीचे बनवाते और उसमें वृक्षों के पौधे रोपते हैं तथा शान्‍तिपूर्वक जल से सींच कर उन्‍हें फल-फूलों से सुशोभित कर के बढ़ाया करते हैं, वे दिव्‍य वाहनों पर सवार हों आभूषणों से सज-धज कर वृक्षों की अत्‍यंत रमणीय एवं शीतल छाया में होकर दिव्‍य पुरुषों द्वारा बारंबार सम्‍मान पाते हुए यमलोक में जाते है। जो ब्राह्मणों को घोड़े, बैल अथवा हाथी की सवारी दान करते हैं, वे सोने के समान विमानों द्वारा यमलोक में जाते हैं।

भूमि दान करने वाले लोग समस्‍त कामनाओं से तृप्‍त होकर बैल जुते हुए सूर्य के समान तेजस्‍वी विमानों द्वारा उस लोक की यात्रा करते हैं। जो श्रेष्‍ठ ब्राह्मणों को अत्‍यन्‍त भक्‍तिपूर्वक सुगन्‍धित पदार्थ तथा पुष्‍प प्रदान करते हैं, वे सुगन्‍ध पूर्ण सुन्दर वेश धारणकर उत्तम कान्‍ति से देदीप्‍यमान हो सुन्‍दर हार पहने हुए विचित्र विमानों पर बैठकर धर्मराज के नगर में जाते हैं। दीप-दान करने वाले पुरुष सूर्य के समान तेजस्‍वी विमानों से दसों दिशाओं को देदीप्‍यमान करते हुए साक्षात अग्नि के समान कान्‍तिमान स्‍वरूप से यात्रा करते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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