द्विनवतितम (92) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (वैष्णवधर्म पर्व)
महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: द्विनवतितम अध्याय: भाग-16 का हिन्दी अनुवाद
जो मनुष्य यहाँ नरक का भय न मानकर ब्राह्मणों का धन छान लेते हैं, उन्हें गालियाँ सुनाते हैं और सदा मारते रहते हैं, वे जब यमपुर के मार्ग में जाते हैं, उस समय यमदूत इस तरह जकड़कर बांधते हैं कि उनका गला सूख जाता है; उनकी जीभ, आँख और नाक काट ली जाती है, उनके शरीर पर दुर्गन्धित पीब और रक्त डाला जाता है, गीदड़ उनके मांस नोंच–नोंच कर खाते हैं और क्रोध में भरे हुए भयानक चाण्डाल उन्हें चारों ओर से पीड़ा पहुँचाते हैं। इससे वे करुणायुक्त भीषण स्वर से चिल्लाते रहते हैं। यमलोक में पहुँचने पर भी उन पापियों को जीते–जी विष्ठा के कुएँ में डाल दिया जाता है और वहो वे करोड़ो वर्षों तक अनेक प्रकार से पीड़ा सहते हुए कष्ट भोगते रहते हैं। राजन! तदनन्तर समयानुसार नरकयातना से छुटकारा पाने पर वे इस लोक में सौ करोड़ जन्मों तक विष्ठा के कीड़े होते हैं। दान न करने वाले जीवों के कण्ठ, मुंह और तालु भूख–प्यास के मारे सूखे रहते हैं तथा वे चलते समय यमदूतों से बारंबार अन्न और जल मांगा करते हैं। वे कहते हैं- ‘मालिक! हम भूख और प्यास से बहुत कष्ट पा रहे हैं, अब चला नहीं जाता; कृपा करके हमें अन्न और पानी दे दीजिये। इस प्रकार याचना करते ही रह जाते हैं, किंतु कुछ भी नहीं मिलता। यमदूत उन्हें उसी अवस्था में यमराज के घर पहुँचा देते हैं। पाण्डुपुत्र! जो ब्राह्मणों को नाना प्रकार की वस्तुएँ दान देते हैं, वे सुखपूर्वक उनके फल को प्राप्त करते हैं। जो लोग ब्राह्मणों को, उनमें भी विशेषत: श्रोत्रियों को अत्यन्त प्रसन्नता के साथ अच्छी प्रकार से बनाये हुए उत्तम अन्न का भोजन कराते हैं, वे महात्मा पुरुष विचित्र विमानों पर बैठकर यमलोक की यात्रा करते हैं। उस महान पथ में सुन्दर स्त्रियाँ और अप्सराएँ उनकी सेवा करती रहती हैं। जो प्रतिदिन निष्कपट भाव से सत्यभाषण करते हैं, वे निर्मल बादलों के समान बैल जुते हुए विमानों द्वारा यमलोक में जाते हैं। जो ब्राह्मणों को और उनमें भी विशेषत: श्रोत्रियों को कपिला आदि गौओं का पवित्र दान देते रहते हैं, वे निर्मल कान्ति वाले बैल जुते हुए विमानों में बैठकर यमलोक को जाते हैं। वहाँ अप्सराएँ उनकी सेवा करती रहती हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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