नवतितम (90) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)
महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: नवतितम अध्याय: श्लोक 111-120 का हिन्दी अनुवाद
उन समस्त श्रेष्ठ ब्राह्मणों से ऐसा कहकर वे नेवला वहाँ से गायब हो गया और वे ब्राह्मण भी अपने-अपने घर चले गये। शत्रु नगरी पर विजय पाने वाले जनमेजय! वहाँ अश्वमेध नामक महायज्ञ में जो आश्चर्यजनक घटना घटित हुई थी, वे सारा प्रसंग मैंने तुम्हें बता दिया। नरेश्वर! उस यज्ञ के सम्बन्ध में ऐसी घटना सुनकर तुम्हें किसी प्रकार विस्मय नहीं करना चाहिये। सहस्रों कोटि ऐसे ऋषि हो गये हैं, जो यज्ञ न करके केवल तपस्या के ही बल से दिव्य लोक को प्राप्त हो चुके हैं। किसी भी प्राणी से द्रोह न करना, मन में संतोष रखना, शील और सदाचार का पालन करना, सबके प्रति सरलतापूर्ण बर्ताव करना, तपस्या करना, मन और इन्द्रियों को संयम में रखना, सत्य बोलना और न्यायोपार्जित वस्तु का श्रद्धापूर्वक दान करना- इनमें से एक-एक गुण बड़े-बड़े यज्ञों के समान हैं।
इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिक पर्व के अन्तर्गत अनुगीता पर्व में नकुलोपाख्यान विषयक नब्बेवां अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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