सप्तम (7) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (अश्वमेध पर्व)
महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: सप्तम अध्याय: श्लोक 19-27 का हिन्दी अनुवाद
मरुत्त ने कहा- ब्रह्मन! यदि मैं आपका साथ छोड़ दूँ तो जब तक सूर्य तपते हों जब तक पर्वत स्थित रहे तब तक मुझे उत्तम लोकों की प्राप्ति न हो। यदि आपका साथ छोड़ दूँ तो मुझे संसार में शुभ बुद्धि कभी न प्राप्त हो और मै सदा विषयों में ही रचा पचा रह जाऊँ। संवर्त ने कहा- अविक्षितकुमार! तुम्हारी शुभ बुद्धि सदा सत्कर्मों में ही लगी रहे। पृथ्वीनाथ! मेरे मन में भी तुम्हारा यज्ञ कराने की इच्छा तो है ही। राजन! इसके लिये मैं तुम्हें परम उत्तम अक्षय धन की प्राप्ति का उपाय बतलाऊँगा, जिससे तुम गन्धर्वों सहित सम्पूर्ण देवताओं तथा इन्द्र को नीचा दिखा सकोगे। मुझको अपने लिये धन अथवा यजमानों के संग्रह का विचार नहीं है। मुझे तो भाई बृहस्पति और इन्द्र दोनों के विरुद्ध कार्य करना है। निश्चय ही मैं तुम्हें इन्द्र की बराबरी में बैठाऊँगा और तुम्हारा प्रिय करूँगा। मैं यह बात तुम से सत्य कहता हूँ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिकपर्व के अन्तर्गत अश्वमेधपर्व में संवर्त और मरुत्त का उपाख्यानविषयक सातवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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