एकोनाशीतितम (79) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)
महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: एकोनाशीतितम अध्याय: श्लोक 19-39 का हिन्दी अनुवाद
वत्स! तुम धन्य हो। पुत्र! तुम्हारे योग्य पराक्रम देखकर मैं तुम पर बहुत प्रसन्न हूँ। अच्छा बेटा! अब मैं तुम पर बाण छोड़ता हूँ। तुम सावधान एवं स्थिर हो जाओ। ऐसा कहकर शत्रुसूदन अर्जुन ने बभ्रुवाहन पर नाराचों की वर्षा आरम्भ कर दी। परंतु राजा बभ्रुवाहन ने गाण्डीव धनुष से छूटे हुए वज्र और बिजली के समान तेजस्वी उन समस्त नाराचों को अपने भल्लों द्वारा मारकर प्रत्येक दो-दो, तीन–तीन टुकड़े कर दिये। राजन! तब पाण्डुपुत्र अर्जुन ने हंसते हुए–से अपने क्षुर नामक दिव्य बाणों द्वारा बभ्रुवाहन के रथ से सुनहरे तालवृक्ष के समान ऊंची सुवर्णभूषित ध्वजा काट गिरायी। शत्रुदमन नरेश! साथ ही उन्होंने उसके महान वेगशाली विशालकाय घोड़ों के भी प्राण ले लिये। तब रथ से उतरकर परम क्रोधी राजा बभ्रुवाहन कुपित हो पैदल ही अपने पिता पाण्डुपुत्र अर्जुन के साथ युद्ध करने लगा। कुन्तीपुत्रों में श्रेष्ठ इन्द्रकुमार अर्जुन अपने बेटे के पराक्रम से बहुत प्रसन्न हुए थे। इसलिये वे उसे अधिक पीड़ा नहीं देते थे। बलवान बभ्रुवाहन पिता को युद्ध से विरत मानकर विषधर सर्पों के समान विषैले बाणों द्वारा उन्हें पुन: पीड़ा देने लगा। उसने बालोचित अविवेक के कारण परिणाम पर विचार किये बिना ही सुन्दर पांख वाले एक तीखे बाण द्वारा पिता की छाती में एक घहरा आघात किया। राजन! वह अत्यन्त दु:खदायी बाण पाण्डुपुत्र अर्जुन के मर्म-स्थल को विदीर्ण करके भीतर घुस गया। महाराज! पुत्र के चलाये हुए उस बाण से अत्यन्त घायल होकर कुरुनन्दन अर्जुन मूर्च्छित हो पृथ्वी पर गिर पड़े। कौरव–धुरंधर वीर अर्जुन के धराशायी होने पर चित्रांगदाकुमार बभ्रुवाहन भी मूर्च्छित हो गया। राजा बभ्रुवाहन युद्ध स्थल में बड़ा परिश्रम करके लड़ा था। वह भी अर्जुन के बाण समूहों द्वारा पहले से ही बहुत घायल हो चुका था। अत: पिता को मारा गया देख वह भी युद्ध के मुहाने पर अचेत होकर गिर पड़ा और पृथ्वी का आलिंगन करने लगा। पतिदेव मारे गये और पुत्र भी संज्ञाशून्य होकर पृथ्वी पर पड़ा है। यह देख चित्रांगदा ने संतप्त हृदय से समरांगण में प्रवेश किया। मणिपुर–नरेश की माता का हृदय शोक से संतप्त हो उठा था! रोती और कांपती हुई चित्रांगदा ने देखा कि पतिदेव मारे गये।
इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिक पर्व के अन्तर्गत अनुगीतापर्व में अर्जुन और बभ्रुवाहन का युद्धविषयक उनासीवां अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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