अष्टसप्ततितम (78) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)
महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: अष्टसप्ततितम अध्याय: श्लोक 36-49 का हिन्दी अनुवाद
जब दु:शला इस प्रकार करुणायुक्त वचन कहने लगी, तब अर्जुन राजा धृतराष्ट्र और गान्धारी देवी को याद करके दु:ख और शोक से पीड़ित हो क्षत्रिय–धर्म की निन्दा करने लगे- 'उस शास्त्र–धर्म को धिक्कार है, जिसके लिये मैंने अपने सारे बान्धवजनों को यमलोक पहुँचा दिया।' ऐसा कहकर अर्जुन ने दु:शला को बहुत सान्त्वना दी और उसके प्रति अपने कृपा प्रसाद का परिचय दिया। फिर प्रसन्नतापूर्वक उससे गले मिलकर उसे घर की ओर विदा किया। तदनन्तर सुमुखी दु:शला ने उस महान समर से अपने समस्त योद्धाओं को पीछे लौटाया और अर्जुन की प्रशंसा करती हुई वह अपने घर को लौट गयी। इस प्रकार सैन्धव वीरों को परास्त करके अर्जुन इच्छानुसार विचरने और दौड़ने वाले उस घोड़े के पीछे–पीछे स्वयं भी दौड़ने लगे। जैसे पिनाकधारी महादेव जी आकाश में मृग के पीछे दौड़े थे, उसी प्रकार वीर अर्जुन ने उस यज्ञ सम्बन्धी घोड़े का विधिपूर्वक अनुसरण किया। वह अश्व यथेष्टगति से क्रमश: सभी देशों में घूमता और अर्जुन के पराक्रम का विस्तार करता हुआ इच्छानुसार विचरने लगा। पुरुषप्रवर जनमेजय! इस प्रकार क्रमश: विचरण करता हुआ वह अश्व अर्जुन सहित मणिपुरनरेश के राज्य में जा पहुँचा।
इस प्रकार श्रीमहाभारत आवश्मेधिक पर्व के अन्तर्गत अनुगीता पर्व में सैन्धवों की पराजय विषयक अठहत्तरवां अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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