चतु:सप्ततितम (74) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)
महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: चतु:सप्ततितम अध्याय: श्लोक 18-34 का हिन्दी अनुवाद
प्रभो! भरतनन्दन! अर्जुन के हाथ से गिरते हुए उस धनुष का रूप इन्द्रधनुष के समान प्रतीत होता था। उस दिव्य महाधनुष के गिर जाने पर महासमर में खड़ा हुआ धृतवर्मा ठहाका लगाकर जोर–जोर से हँसने लगा। इससे अर्जुन का रोष बढ़ गया। उन्होंने हाथ से रक्त पोंछकर उस दिव्य धनुष को पुन: उठा लिया और धृत पर बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। फिर तो अर्जुन के उस पराक्रम की प्रशंसा करते हुए नाना प्रकार के प्राणियों का कोलाहल समूचे आकाश में व्याप्त हो गया। अर्जुन को काल, अंत तक और यमराज के समान कुपित हुआ देख त्रिगर्तदेशीय योद्धाओं ने चारों ओर से आकर उन्हें घेर लिया। धृतवर्मा की रक्षा के लिये सहसा आक्रमण करके त्रिगर्तों ने गुडाकेश अर्जुन को सब ओर से घेर लिया, तब उन्हें बड़ा क्रोध हुआ। फिर तो उन्होंने इन्द्र के वज्र की भाँति दुस्सह लौह निर्मित बहुसंख्यक बाणों द्वारा बात–की–बात में उनके अठारह प्रमुख योद्धाओं को यमलोक पहुँचा दिया। तब तो त्रिगर्तों में भगदड़ मच गयी। उन्हें भागते देख अर्जुन ने जोर–जोर से हँसते हुए बड़ी उतावली के साथ सर्पाकार बाणों द्वारा उन सबको मारना आरम्भ किया। राजन! धनंजय के बाणों से पीड़ित हुए समस्त त्रिगर्तदेशीय महारथियों का युद्ध विषयक उत्साह नष्ट हो गया; अत: वे चारों दिशाओं में भाग चले। उनमें से कितने ही संशप्तकसूदन पुरुषसिंह अर्जुन से इस प्रकार कहने लगे– ‘कुन्तीनन्दन! हम सब आपके आज्ञाकरी सेवक हैं और सभी सदा आपके अधीन रहेंगे। पार्थ! हम सभी सेवक विनीत भाव से आपके सामने खड़े हैं। आप हमें आज्ञा दें। कौरवनन्दन! हम सब लोग आपके समस्त प्रिय कार्य सदा करते रहेंगे।' उनकी ये बातें सुनकर अर्जुन ने उनसे कहा– ‘राजाओं! अपने प्राणों की रक्षा करो। इसका एक ही उपाय है, हमारा शासन स्वीकार कर लो।’
इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिक पर्व के अन्तर्गत अनुगीता पर्व में त्रिगर्तों की पराजय विषयक चौहत्तरवां अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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