षष्ठ (6) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (अश्वमेध पर्व)
महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: षष्ठ अध्याय: श्लोक 20-33 का हिन्दी अनुवाद
यदि वे तुमसे मेरे पास आने के लिये मेरा पता पूछें तो तुम निर्भिक कह देना कि ‘नारद जी आग में समा गये’। व्यास जी कहते है- राजन! यह सुनकर राजर्षि मरुत्त ने बहुत अच्छा कहकर नारद जी की भूमि-भूरि प्रशंसा की और उनसे जाने की आज्ञा ले वे वाराणसीपुरी की ओर चल दिये। वहाँ जाकर नारद जी के कथन का स्मरण करते हुए महायशस्वी नरेश ने उनके बताये अनुसार काशीपुरी के द्वार पर एक मुर्दा ला कर रख दिया। इसी तरह विप्रवर संवर्त भी पुरी के द्वार आये किंतु उस मुर्दे को देखकर वे सहसा पीछे की ओर लौट पड़े। उन्हें लौटा देख राजा मरुत्त सवंर्त से शिक्षा लेने के लिये हाथ जोड़े उनके पीछे-पीछे गये। एकान्त में पहुँचने पर राजा को अपने पीछे-पीछे आते देख संवर्त ने उन पर धूल फेंकी, कीचड़ उछाला तथा थूक और खखार डाल दिये। इस प्रकार संवर्त पर भी राजा मरुत्त हाथ जोड़ उन्हें प्रसन्न करने के उद्देश्य से उन महर्षि के पीछे-पीछे ही गये। तब संवर्त मुनि लौटकर शीतल छाया से युक्त तथा अनेक शाखाओं से सुशोभित एक बरगद के नीच थककर बैठ गये।
इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिकपर्व के अन्तर्गत अश्वमेध पर्व में संवर्त और मरुत्त का उपाख्यानविषयक छठा अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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