पंचम (5) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (अश्वमेध पर्व)
महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: पंचम अध्याय: श्लोक 22-28 का हिन्दी अनुवाद
देवेश्वर! पाकशासन! तुम्हारी पुरोहिती करके मैं मरणधर्मा मरुत्त का यज्ञ कैसे करा सकता हूँ। देवेन्द्र! धैर्य धारण करो। अब मैं भी कभी किसी मनुष्य के यज्ञ में जाकर स्त्रुवा हाथ में नहीं लूगाँ। इसके सिवा मेरी यह बात भी ध्यान से सुन लो। आग चाहे ठण्डी हो जाय, पृथ्वी उलट जाय और सूर्यदेव प्रकाश करना छोड़ दें, किंतु मेरी यह सच्ची प्रतिज्ञा नहीं टल सकती’। वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! बृहस्पति जी की बात सुनकर इन्द्र का मात्सर्य दूर हो गया और तब वे उनकी प्रशंसा करके अपने घर में चले गये।
इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिकपर्व के अन्तर्गत अश्वमेधपर्व में संवर्त और मरुत्त का उपाख्यानविषयक पाँचवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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