चतुर्दश(14) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (अश्वमेध पर्व)
महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: चतुर्दश अध्याय: श्लोक भाग-3 का हिन्दी अनुवाद
राजर्षि युधिष्ठिर स्वयं जैसे आचार-विचार से युक्त थे, उसी का भूतल पर प्रसार हुआ था। समस्त पाण्डव सम्पूर्ण शुभ लक्षणों से सम्पन्न, धर्माचारण करने वाले और बड़े भाई की आज्ञा के अधीन रहने वाले थे। उनका दर्शन सभी को प्रिय था। उनकी छाती सिंह के समान चौड़ी थी। वे क्रोध पर विजय पाने वाले और तेज एवं बल से सम्पन्न थे। उन सबकी भुजाएँ घुटनों तक लंबी थीं। वे सभी दानशील एवं जितेन्द्रिय थे। पाण्डव जब इस पृथ्वी का शासन कर रहे थे, उस समय सभी ऋतुएँ अपने गुणों से सुशोभित होती थीं। ताराओं सहित समस्त ग्रह सब के लिये सुखद हो गये थे। पृथ्वी पर खेती की उपज बढ़ गयी थी। सभी रत्न और गुण प्रकट हो गये थे। कामधेनु के समान वह सहस्रों प्रकार के भोगरूप फल देती थी। पूर्वकाल मेें मनु आदि राजर्षियों ने मनुष्यों में जो मर्यादाएँ स्थापित की थीं, उन सबका तथा कुलोचित सदाचारों का उल्लंघन न करते हुए भूमण्डल के सभी राजा अपने-अपने राज्य का शासन करते थे। इस प्रकार सभी भूपाल धर्मपुत्र युधिष्ठिर का प्रिय करने वाले थे। धर्मिष्ठ राजा श्रेष्ठ कुलों को विशेष प्रोत्साहन देते थे। वे मनु की बनायी हुई राजनीति के अनुसार इस वसुधा का शासन करते थे। तात! इस पृथ्वी पर राजाओं के बर्ताव सदा धर्मानुकूल होते थे। प्राय: लोगों की बुद्धि राजा के ही बर्ताव का अनुसरण करने वाली होती है। जैसे इन्द्र स्वर्ग का शासन करते थे, उसी प्रकार गाण्डीवधारी अर्जुन से सुरक्षित राजा युधिष्ठिर भगवान श्रीकृष्ण के सहयोग से अपने राज्य-भारतवर्ष का शासन करते थे।
इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधपर्व के अन्तर्गत अश्वमेध पर्व में चौदहवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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